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________________ छट्टो सग्गो] कोह तणय महर काह तणउ र । एत्तिएं कालेण ण किउ फन्द्ध ।। उहु पदगोट्टि अवहम्ण विठु । जिह पूयम चूरिय णिहज रितु । जिह बुक्कगु संदणु वर-तुरंग। दरिसिउ जमलम्जुण-एक्स-भंगृ॥ गिरि धरित जायसेज्महि मिसण्णु । घणु गामिउ पूरिउ 'पंचजण्णु ।। अहिपस्थित मस्थिउ भइहरिय। 'एत्तिए पि कंसहो बुद्धि पत्थि ।। चाणूर ताम पारायणंण ।। आयामिज असुर-परायणेण ॥ घत्ता-विउगारउ फरिवि सरीरु रिउ अम-पट्टणे पट्ठापित । उच्चाहवि फंसहो गाइ णिय-पयाउ बरिसावित ॥१३॥ तो तेण वि कलिउ मंग्ला। आलाण-संमु पं गयेण भागु ।। गं दरिसिउ काले कालपासु । गं अलहरण थिज्जुल-विलास ।। णारायणु माहअसिवरण । णं मंदर बेटिज विसहरण॥ तउ अमउ गाई घिउ बलिवि खग्गु । दामोयर-रोमगु वि ण भगा। जीवनसवल्लहु राजहंस ।। अबछोरिज चिउर लेवि कंसु ।। समप में उपाय नहीं किया ? नन्दगोठ में वह विष्णु उत्पन्न हो गया। जिस प्रकार उसने पूतना को चूर-चूर किया, रिष्ट नामक दैत्य का नाश पिया, जिस प्रकार उसने कौए, रथ और श्रेष्ठ अश्व को नष्ट किया. तथा यमलार्जन वृक्ष का विनाश दिखाया, पहाड़ को उठाया, नागर्शया पर बैठा, धनुष चढ़ाया और शंख को फंका, साँप को नाथा और भद्र हस्ति को मथा। इतने पर भी कंस को बुद्धि नहीं आयी। इसी बीच तब तक असुरों को पराजित करनेवाले नारायण ने चाणूर को घुमा दिया। घत्ता–शरीर को निष्प्राण करके उसे यमनगर में प्रेषित कर दिया, मानो कंस के [प्रताप] को उठाकर उन्होंने अपना प्रताप दिखाया ।।१३।। तब कंस ने भी अपनी सलबार निकाल ली, मानो हाथी ने आलान-सम्म उखाड़ लिया हो, मानो काल ने कालपाश का प्रदर्शन किया हो, मानो मेध-समूह ने विद्युत्-बिलास किया हो । उसने असिवर से नारायण को आहत किया, मानो विषधरों ने मंदराचल को घेर लिया। उस अवसर पर खड्ग अविकार भाव से मुड़कर स्थित हो गया, श्रीकृष्ण के बाल का अग्रभाग भी १.म-पंचाण। २. अ-एसियहमि । - - - -
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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