SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२] हंसयलहं णरवराहं । सीमंत महिं सिकराहं ॥ पज रही पट्टगहरे महायणासु । विभाण हो पहले सुरयणा ॥ far देवई जाय जेत्तवार । अप्फोडिउ णरव तेत्तवार ।। [सक रिचरिए घसा - जेहरा विष्णउ आसि तं तेहउ जि समावह कि वह कोवधणे सालिक पहलु विष्व ॥ १४ ॥ सो कg कंस कट्टण करेवि । थिउ सरल गवर तर धरेवि ॥ संकरण सेलिभत् । किड वइरिसेष्णु सयलु विणिरत् ॥ रिज गावतु उ # तो महर समप्पद कामधेणु ॥ अपुग व पालु | संभासि सलु साहबासु ॥ hterविय गंव जसोय आय ! अवरोप्पय कुसला कुसलि जाय ॥ काले सुकेण किउ लेउ । णियसूय परिणाविज वासुएउ ॥ बिज्जाहरणाऐं सच्हाम 1 एतहि रेवइ रामाहिराम ॥ हलहरहरे दिष्ण णिय मस्टलेग । रोहिणि भायरेण अणाउलेण ॥ नहीं हुआ। राजश्रेष्ठ और जीवंजसा के प्रिय कंस को बालों से पकड़कर कृष्ण ने पछाड़ दिया। समस्त नरवरों, सामंतों, मन्त्रियों और अनुषरों के देखते-देखते, पौर नगर के महाजनों और वाकाशतल में विमानसहित सुरजनों के देखते-देखते नारायण ने कंस को उतनी ही बार पछाड़ा, जितनी बार कंस ने देवकी के पुत्रों को पहले पछाड़ा था । घसा — जो [पूर्व में ] जिस प्रकार दिया हुआ है, वह वैसा ही आ पड़ता है। क्या कोदों के बोने पर उसके फलस्वरूप बालिधान के कण उत्पन्न हो सकते हैं ॥ १४ ॥ कंस का कर्तनकर, वृक्ष लेकर, तथा जिनके हाथ में पत्थर का खंभा है, ऐसे श्रीकृष्ण गजवर पर बैठ गए। उन्होंने समस्त शत्रुसेना को निरस्त्र कर दिया। उन्होंने राजा उम्र सेन को बुलाया, उन्हें कामधेनु के समान मथुरा नगरी सौंप दी। वह स्वयं देवकी के पास गये। सभी साथ रहने वालों से संभाषण किया। बुलाए गये नन्द और यशोदा आये। एक-दूसरे से कुशलवार्ता हुई । उस अवसर पर सुकेतु ने जरा भी देर नहीं की और विद्याधर ने वासुदेव से सत्यभामा नाम की अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। इधर रमणियों में सुन्दर रेवती, बलराम को उनके ससुर और रोहिणी के भाई ने बिना किसी आकुलता के प्रदान कर दी।
SR No.090401
Book TitleRitthnemichariu
Original Sutra AuthorSayambhu
AuthorDevendra Kumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1985
Total Pages204
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy