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[सयंभूएवकए रिगेमिचरिए
यत्ता--जेतहे परिसक्का कण्ह जहि बलएउ बलुखरउ । तेतहे तगुतेएं होउ रंगु वि काला पंडुरत ॥११॥
वप्पुम्भ कर एतहे वि। चट्ठिय मुष्ट्रिय चाणूर ये वि॥ णं जिग्गय विग्गय गिल्लोड। ण सासहों कंतहों बालुबर।। अप्फोरिउ सरहसु साबलेख । रणु मरिगाउ वग्गिउ ग किउ रवेउ ।। जसतबहहो कहीं एषक मुक्कु। उद्दामहो रामहों अवरुद्ध कु॥ सुभयंकर हज करकत्तरीहिं। पीसरहिं करहि भामरीहिं ।। कर-छोहि गाहहि पीडहि। अवरेहि अणेहि फोडणे हि ॥ साथ दम्बार संकरिसणेण। कहोग इसका इसिस खर-णहर-भयंकर-पहरणेण ।
णं वारणु वारणवारणेण ॥ पत्ता- हेलए जि समाहउ सौसि मुट्ठिपहारें मुट्ठियउ । किउ मासहो पोट्टलु सम्बु जममुहे परिज ण उद्विग्रउ ॥१२॥
चाणूरे वितिउ तइ उबाउ। बढे बउ अच्छउ तो जिगाउ ।। वोल्लति ताम णहें देवियाउ ।
कहि तणउ जुन कहि सण(उ) उवाउ ॥ पत्ता–जहाँ कृष्ण जाते और बल से उद्धत बलदेव जाते, वहां पर उनके शरीर के तेज से रंग भी काले का सफेद और सफेद का काला हो जाता ॥११॥ ____ महाँ दर्प से पद्धत और दुर्धर मुष्टिक और चाणूर दोनों इस प्रकार उठे, मानो आन्द्र गंडस्थलवाले दिग्गज निकले हों, मानो शासक कंस के बाहुदण्ड हो । कृष्ण ने आस्फालन किया और हर्ष तथा अहंकार के साथ युद्ध मोगा, और बिना किसी विलम्ब के वह गरजे । यश के लोभी कृष्ण के लिए एक मल्ल छोड़ा गया तथा दूसरा उद्दाम बलभव के पास पहुँचा। बलराम ने केंची निकालना, दांव लेना, चक्कर खाना, हाथ से चोटें मारना, पकजना, पीड़ना आदि क्रियाओं तथा दूसरी अनेक क्रीड़ाओं के द्वारा, दुर्दर्शनीय तीव्र नखों के दुनिवार भयंकर प्रहार से पेट का भेदन बार दिया । जिस प्रकार सिंह हाथी को आहत कर देता है, उसी प्रकार
पत्ता–सिर पर मुट्ठी के प्रहार से आहत कर मुष्टिक को स्नेल-खेल में ढेर कर दिया, उसे मांस की पोटली बना दिया, वह यम के मुंह में जा पड़ा और फिर नहीं उठा ।।१।।
उस समय चाणूर ने उपाय सोचा कि उस श्रेष्ट का वध करना चाहिए। इतने में आकाश में देवियां बोलती हैं--कहां का युद्ध, कहाँ का उपाय, कहाँ की मथुरा और कहाँ का राज्य ? इतने