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छट्टो सगो]
सं फेडद गइवि पर एक्क मासु ॥ जासुसणई वलण तियसहं असण् ।
जे विटु णासाइ सो अबज्न ।। पत्ता-हक्कारिपि सो पाणूर अवर षणुबह मुट्टियउ। लपिसम्जन राष्ट्र विसण्णु धूमकेत ण णहिटियउ॥५॥
तो महरापुरे परमेसरेग। बोल्लाविय वेवि कियायरेण ॥ परिवाल जाह जाणाह कया। मइ पह-पसाय-रिण हियाइ था। तो क्यणु महारउ कर स । मा दाम्हे नि तेति इरन र बलवंतउ दौसद पंदजाउ । प्रण सौराउनु तहो सहाउ । सो पह हणेउ मुहिएण। बलएउवलबार मुद्विएग ॥ 'धुरंधरह सहि रणि पुखराई। हक्कारा गय हरिहलहराई। संबल्लिय बल्लवबल-महल्ले । वणु-उपरि-मल्लेमकेशकमाल ।
समालालंकिय-उत्तमंग।
भूमूसियभूरिभुनाभवंग ॥ है । वह मुझे मारेगा, देवता भी मुझे नहीं बना सकते । तव भी इसका उपाय सोचना चाहिए जिससे कोई किसी प्रकार सम तक पहुँच सके। यह शल्य उसके हृदय को कष्ट देती है। यद्यपि उसे केवल एक मल्ल तोड़ सकता है, जिसके पर देवताओं के लिए भी असाध्य है, जिसके देखने पर वह अवध्य अवश्य मारा जाएगा।
पत्ता-तब चाणूर और दूसरे धनुषारी योद्धा को बुलाकर देखा । वे ऐसे विखाई देते थे जैसे आकाश में राहु और घूमकेतु स्थित हों ।।५।।
तब जिसका आदर किया गया है ऐसे परमेश्वर (कंस) ने उन दोनों (मल्लों) को मधुरा में बुलवाया और कहा-"परिपालन करो, यदि तुम लोग किए हुए को जानते हो, यदि स्वामी के प्रसाद का ऋण हृदय में है तो आज तुम हमारा कहा पूरा करो । तुम्हारे रहते हुए(शत्रु) राज्य का अपहरण न करे। नन्द का पुत्र बलवान दिखाई देता है । और फिर मलभद्र उसका सहायक है, तुम्हें उसे मुष्टि (प्रहार) से मार डालना चाहिए । मुष्टिक द्वारा बलभद्र का बस छीन लिया जाए।" तब युद्ध में दुर्धर और पुरन्धर हरि-हलपर को बुलाया गया । उत्तम बल से महान में महामल्ल पले जो दानवों के ऊपर एक-से-एक महान् मल्ल हैं, जिनके सिर मुरेठ (वटमासा) से अलंकृत हैं, जो भौंहों और समर्थ भुजाओं से विभूषित है।
१. अ---घुरघरिय तेहिं रणे दुराहं ।