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[सयंभूएबकए रिटुणेमिधरिए पत्ता-पिसुणिज्जद महरहि तूर गोषिहि रहसुसाइयहि । गं सहो धरि कूवार हरिबलएवहिं भाइयहिं ।।६।।
तो रोहिणिवेषइ-तगुरुहेहि । भवरेहि मि मिलिएहिं गोपुहेहि ।। लक्विज पोवु पोषमाणु। कियवस्थारुहरयावसागु ॥ संकरिसण कहा जणदणासु। बुदम-वणवेह विमणाम् ।। एहहण कहिल्सई सिलहि अम । विध 'बेवा-जायई फंसु तेम॥ तं वयण सुवि महसूयण। जमपंगण-पाधियपूयण॥ ससयाजमा लज्जण मोजणेग । कालियसिर-सेहर-सोरणे ॥ उत्थंषिय-गिरि-गोबरणेण । वसुएम-बस-संबद्धगेण ॥ परिहाण-सयाई लेवावियाहं ।
मंडमंड रिजजीवियाई ॥ घता-बलए सामउ वासट कण्हें कणय समुज्वलउ । पंकलिउ कंसहो पिसु बीस कालउ पायलट ॥७॥
सिरिकुलहर-हसहर बलिय देवि ।
गामीणगोषफियमल्ल मेथि ॥ ___घता-हर्ष से उछलती हुई गोपियों के द्वारा मधुर नगाड़ा सुना जाता है मानो हरि और हलधर के आने से कस के घर गुहार (पुकार मच गई हो ॥६॥ ___ तब रोहिणी और देवकी के पुत्रों (बलभद्र और कृष्ण) और दूसरे मिले हुए ग्वालों के द्वारा वस्त्र घोसा हुआ धोबी देखा गया जो वस्त्रों में लगी धूल हटा रहा था। बलभद्र, दुर्दम दानवों की देह का दलन करनेवाले जनार्दन (श्रीकृष्ण) से कहते हैं कि यह (धोबी) जिस प्रकार शिला पर वस्त्रों को पछाड़ता है, उसी प्रकार पहले देवकी के पुत्रों को कैस ने पछाड़ा।" यह वचन सुनकर पूतना को यम के प्रांगण में भेजनेवाले; शाकट सहित यमलार्जुन को मोड़नेवाले, कालिया नाग के सिरशेखर को तोड़नेवाले, गोवर्धन पर्वत को ऊँचा उठानेवाले, बसुदेव के वंश को बढ़ानेवाले श्रीकृष्ण ने सैकड़ों वस्त्र ले लिये; मानो बलपूर्वक उन्होंने शत्रु के प्राण ले लिये हों।
पत्ता-बलभत ने श्याम वस्त्र और कृष्ण ने सोने के समान उज्ज्वल वस्त्र खींच लिया, जो मानो कंस से निकाले गए काले-पीले पिस के समान जान पड़ता था ॥७॥
श्रीकृष्ण और हलधर दोनों चल पड़े। जो ग्रामीण मल्लगोप थे उनको भी ले लिया।वे स्यूल
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१. ज, ब-देवइजाएं।