________________
[सयंभूएवकए रिट्ठणेमिचरिए पुणु लोजिउ कंचणकमलसंड ।। विकिपडा मारपरि विहार। बोयज गोणवण रिजाइ । गीसरिउ अमण वर्णधिमहि । पं महणे समत्तए मंवरहि॥ सडिभार एजिसका हलहरेग। ण विज पुंशु सियजल हरेण॥ गोहहं समापे विमायरेण।
सम्भावें भापक्ष भामरेन ॥ पत्ता-बलएए अहिम संत हरि अवजित तहि समए ।
सियपरखें तामस-पक्नु पाई पाईसरे पविषए ॥४॥ वामोदर-हलयर जापवा वि। गम गंदहो गोउल 'पेक्मणेवि ॥ गोवुहेहि ताम वावियाई। महराहिलधरे धल्लावियाई ।। परणाहें विद्याई पंकयाई। पं मुंजीकया महाभयाई॥ विविखण्णहं अग्णई पविरलाई। पं गहसिरि-पयहं सुकोमलाई। रिज-नुबउ एत्यु म मावि मंति। महं मारइ वेव वि ण परति ।। चितेव्बउ तास उवाउ तोवि । जह हरकेवि साह कवि कोवि।।
अच्छा हियबाद बुक्खंति सल्लु । बोझा बांधा हुआ भार उनके ऊपर ऐसा दिखाई देता है जैसे उन्होंने दूसरा गोवर्धन तठा लिया हो। दायों का बिमदन करनेवाले जनार्दन इस प्रकार निकले, जिस प्रकार समुद्र का मंचन होने पर मंदसपल हो । बलभद्र मे किनारे पर उस कमल भार को इस प्रकार देखा, जैसे श्वेत मेष ने बिजली के समूह को देखा हो । आदरपूर्वक वालों को उन्हें सौंपकर सद्भावपूर्वक
बता भाई बलदेव ने नीचा मुख किए हुए भाई का उस अवसर पर आलिंगन किया, जैसे प्रतिपदा के दिन आकाश के मध्य शुक्लपक्ष ने कृष्णपक्ष का आलिंगन किया हो।
श्रीकृष्ण और बलभद्र और मादध भी नन्द का गोकुल देखने के लिए गये। इतने में ग्वालों के द्वारा ले जाए गये और मथुरा के राजा के घर बिसेरे गये कमलों को नरनाप में इस प्रकार देखा मानो महान भयों को इकट्ठा कर दिया गया हो। बड़े-बड़े कमल बिखेर दिए नये, मानो भावाशरूपी लक्ष्मी के सुकोमल पव हों। (उसने सोचा) कि शत्रु दुर्षेय है, इसमें कोई भ्राति नहीं
- १.ज, ब-विमनु । २. छ, ब—मंदरछु । ३,जायो बि । ४.५–पेक्लया ।