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कासा
अर्थ-स्वामीभक्ति से रहित सती व नौकर/भृत्य जिनेन्द्र देव व शास्त्र की भक्ति से रहित जैन तथा गुरु भक्ति से विहीन शिष्य नियम से दुर्गति के मार्ग में लगे हुए हैं ऐसा जानना चाहिये । लोक में कहा जाता है
नुत्ता जिसका खाता है, उसका बजाता है ।
आदमी जिसका खाता है, उसी को काटता है ।। ऐसे स्वामी भक्ति रहित भृत्य दुर्गति के ही पात्र समझना चाहिये। "जिनो यस्य देवता स: जैन" जिनेन्द्र देव जिसके देव हैं तथा उनके मुखारविन्द से निकली देशना जिसके शास्त्र हैं, ऐसे वीतराग प्रभु व उनकी वाणी पर जिसे भक्ति/श्रद्धा नहीं वह जैन नहीं कहला सकता। "गुरु भक्ति रहित शिष्य” के लिये नीतिकारों ने कहा--
कबीरा के नर अंध हैं, जो गुरु को कहते और |
हरि रुठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ।। "गुरु, गुरु ही रहते हैं। अत: गुरु-भक्ति से मुख मोड़ने वाला शिष्य कुमार्गगामी हो जाता है।
गुरु से कपट मित्र से चोरी । के होय निर्धन, के होय कोड़ी ।।
गुरु-पक्ति रहित शिष्य का चारित्र निष्फल है गुरु-भत्ति-विहीणाणं सिस्साणं सब-संग-विरदाणं । ऊसर-खेत्ते ववियं सुवीय-समंजाण-सवणुट्ठाणं ।।७८।।
अन्वयार्थ--( सव्व-संग-विरदाणं) सब परिग्रहों से रहित; किन्तु ( गुरु भत्ति विहीणाणं ) गुरु-भक्ति से विहीन ( सिस्साणं ) शिष्यों के ( सव्वणुट्ठाणं ) सभी अनुष्ठान-जप-तप व्रत आदि ( ऊसरखेते ) ऊसर भूमि में ( ववियं ) बोये गये ( सुवीय समं ) उत्तम बीज के समान ( जाण ) जानो।