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रयणसार
अर्थ-बन्दर, गधा, कुत्ता, बाघ, सूकर, कछुआ, मक्खी, जोंक स्वभाव वाले मनुष्य जिनेन्द्र के श्रेष्ठ धर्म के विनाशक होते हैं । बन्दर स्वभावी—चंचल स्वभावी होता है, चंचलता में हाथ में आई उत्तम
वस्तु को भी तोड़-फोड़ समाप्त कर देता है इसी प्रकार चंचल
स्वभानी पानन मार्ग के विशाशन होते हैं। गधा स्वभावी—“पशूनाम् चाण्डाल गर्दभः" पशुओं में गधे को चाण्डाल
की उपमा दी गई है क्योंकि गधा घास खाते समय जड़ से उखाड़ कर जाता है। आगम में कथन है कि जड़ से उखाड़कर खाने वाला कृष्णलेश्या वाला है । कृष्णलेश्या वाला गर्दभ स्वभावी है
अत: धर्म का विनाशक है। कुत्ता स्वभावी कुना साधर्मी को देखकर भोंकता है, गुर्राता है, उत्तम
भोजन मिलने पर भी नहीं खाता, मल/गंदगी खाता है, उसकी पूँछ सौ बार सीधी करो टेढ़ी ही रहती है वैसे ही स्वान स्वभाव वाले जीवों को साधर्मी का सत्संग नहीं रुचता है, वे धर्मात्माओ को देखकर कुत्ते की तरह चिल्लाते हैं, गरजते हैं, घर का शुद्ध - भोजन उन्हें नहीं रुचता । बाजार का अभक्ष्य भी रुचि से खाते
हैं। ये श्वान स्वभाव वाले जीव धर्म के विनाशक हैं। सूकर स्वभावी--सूकर मल-प्रिय है। शुद्ध मिष्ठान सामने रखने पर भी
मल की ओर हो दौड़ता है । सूकर स्वभाव वाले मानव पाप प्रकृति युक्त होते हैं, गुणों को नहीं, सदा दोषों को देखने में
आनंद मानते हैं, ये धर्म-विनाशक हैं। कछुआ स्वभावी-कछुआ की पीठ इतनी शक्त होती है कि गोली भी
मारो, कोई असर नहीं होता। उसी प्रकार कछुआ स्वभाव वाल्ने मनुष्यों को कितना भी धर्म समझाओ, उन पर उसका कोई असर नहीं होता । अपनी बात को करने के लिए ऐसे डटे रहेगे कि सौ मारो, सहन करेंगे पर पाप को नहीं छोड़ेंगे । ऐसे जीव भी धर्म के विनाशक ही हैं।