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सद्गृहस्थ का आदर्श - रयणसार
किसी भी देश की स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने के लिए, उस देश का संविधान ( कानून ) जिम्मेदार होता है । आज विश्व में हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील एवं परिग्रह इन पाँच पापों को रोकने के लिए, काबू पाने के लिए, पचास हजार से भी अधिक कानून बने हुए हैं, फिर भी पांच पायों को रोकने के ले. अलार्म हाँ वे इसमें फलित होता है कि कानून या संविधान की अनास्था से, पाप-प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं। हर देश का नेता इस बात से चिन्तित है। हर समस्याओं को सुलझाने के लिए कानून तो बनते हैं, लेकिन उन कानूनों का पालन यथार्थ नहीं होता है। इसलिए ही विश्व की व्यवस्था, अस्त-व्यस्त हो रही है।
ऐसे समय में धार्मिक आचरण संहिताओं का, संविधान ( कानूनों ) का असर भी अप्रभावकारी हो रहा है मानव जीवन के लिए। क्योंकि मनुष्य के अन्दर से पापभीरुता निकल गई है। फिर भी लौकिक एवं पारलौकिक सुख-शान्ति को प्राप्त करने की दशा में, पुरुषार्थ करने वाले मानवों के लिए, धार्मिक आचार संहिताओं का अध्ययन-चिन्तन-मनन बहुत जरूरी है, इसी के साथ आचरण की ओर चरणों का बढ़ना भी। __हर व्यक्ति अपने देश की इकाई-नागरिक होते हुए भी उसकी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उसके बहुत से कर्तव्य एवं अधिकार हैं। इसलिये एक आदर्श नागरिक के राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन की मर्यादाओं की चर्चा भी धर्मग्रन्थों में मिलती है। यदि इन धर्मग्रन्थों की आचार संहिताओं के अनुरूप आचरण बनाया जाये तो विश्व के पचास हजार कानूनों के बोझ से हम बच सकते हैं।
___ जैसे एक गाड़ी के कम से कम दो पहिये होते हैं, एक पहिये की गाड़ी कभी नहीं चल सकती । ठीक उसी प्रकार धर्मरूपी गाड़ी के श्रावक एवं मुनि दो पहिये हैं, इनके बिना धर्मरूपी गाड़ी, मोक्षमार्ग पर नहीं चल सकती है। वैसे तो श्रावक एवं साधु की चर्या को दर्शाने वाले आदर्श ग्रन्थ जो "चरणानुयोग' के अन्तर्गत आते हैं । जिनमें स्वतन्त्र स्वतन्त्र रूप से धात्रक एवं मुनिधर्म की प्ररूपणायें की गई हैं। जैसे-रत्नकरण्डश्रावकाचार, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, सागारधर्मामृत आदि अनेक ग्रन्थ, श्रावकों की चर्या के संबोधक, संवाहक हैं। वहीं मूलाचार, भगवतीआराधना, मूलाचारप्रदीप, अनगारधर्मामृत आदि कई ग्रन्थ, मुनि धर्म के आदर्श मार्ग प्रतिपादक