SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुराग . - २० रत्नमाला पृष्ठ का. - 60 वैयावृत्ति की प्रेरणा येनाधकाले यतीनां वैयावृत्त्यं कृतं मुदा। तेनैव शासनं जैन प्रोध्दतं शर्मकारणम् ।। ३२ अन्वयार्थ : जिससे अद्यकाले वर्तमान काल में मुदा हर्ष पूर्वक यतीनाम् मुनियों की वैयावृत्ति येन वैयावृत्यम् कृतम् की तेन उस ने एव शर्मकारणम् जैनम् सुख के कारण भूत जैन शासन का उध्दार किया। शासनम् प्रोक्तम् अर्थ : जिस पुरुष ने आज के वर्तमान काल में हर्ष पूर्वक साधुओं की वैयावृत्ति की, | उसने ही सुख के कारणभूत जैनशासन का उध्दार किया। भावार्थ : वैयावृत्ति की परिभाषा करते हुए आ. समन्तभद्र लिखते हैं कि - व्यापतित्यपनोदः पदयोः संवाहनं च गुणरागात् । वैयावृत्यं यावानुपग्रहोऽन्योऽपि संयमिनाम् ।। . (रत्नकरण्ड श्रावकाचार - ११२) अर्थ : गुणानुराग से संयमी पुरुषों की आपत्तियों को दूर करना, उनके चरणों का मर्दन करना (दाबना) तथा इसी प्रकार की और भी जो उनकी सेवा-टहल या सार-संभाल की जाती है, वह सब वैयावृत्य है। इस कलिकाल में संहनन की हीनता. असंयम की बहुलता आदि कारणों से चारित्र का परिपालन करना, अत्यन्त कठिन हो चुका है। मिथ्यात्व के बोल बाले के कारण संयमी जीवन तीत करना-अत्यन्त दुष्कर हो रहा है। फिर भी आश्चर्य है कि आज अनेको युवासन्त आत्मकल्याण के साथ साथ पर-कल्याण करने में संलग्न हैं। फिर भी मुनियों की संख्या नाण्य है अर्थात् पात्र प्राप्ति अतिशय दुर्लभ है। सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद,
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy