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________________ CM 35. - 20 अन्वयार्थ : योगिना आहार अभय भैषज्य शास्त्रदानादि भेदतः जिनदेवेन चतुर्धा दानम् आम्नातम् लामाला दान के भेद आहारभयभैषज्यशास्त्रदानादि भेदतः । चतुर्धा दानमाम्नातं जिनदेवेन योगिना ।। ३१ योगियों के लिए आहार अभय औषध लुधियागर शास्त्रदानादि भेद से जिनदेव के द्वारा चार प्रकार का दान कहा है। अर्थ: आहार - औषध - अभय और शास्त्रदान के भेद से दान चार प्रकार का है, ऐसा | जिनेन्द्र देव ने कहा है । यह दान साधुओं को दिया जाता है। भावार्थ : चतुस्संघ की आत्मसाधना निर्विघ्न हो, इस उद्देश्य से जिनेन्द्र देव ने चार 'प्रकार के दान की प्ररूपणा की है। आहारदान : भूख सबसे बड़ा पाप है" वह शरीर की कान्ति को नष्ट कर देती है, बुध्दि को भ्रष्ट करती है, व्रत-संयम और तप में व्यवधान उत्पन्न करती है. आवश्यक कर्मों। के परिपालन में बाधा उत्पन्न करती है, उस भूख के शमन करने के लिए प्रासुक, वातावरणानुकूल, साधना का वर्द्धन करनेवाला आहार भक्तिपूर्वक मुनियों के लिए देना, | आहारदान कहलाता है। : अभयदान मुनियों के निवास हेतु प्रासुक वसतिका प्रदान करना, अभयदान है। धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ मनुष्य के लिए इष्ट हैं, वह विना जीवन के संभव नहीं है। अतः पर जीवन की रक्षा करना, अभयदान है। दया धर्म का मूल है, सम्पूर्ण दानों में जीवन दान सर्वश्रेष्ठ दान है, अतः अभयदान | देना निहायत जरूरी है। सुविधि ज्ञान चद्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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