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________________ २० रत्नमाला सुख श्रावकों का कर्तव्य है। साधु और श्रावक दोनों भी धर्म रूपी रथके दो चक्र हैं। दोनों ही परस्पर में उपकारप्रत्युपकार करते हुए अपनी आत्मसाधना करते हैं। दोनों भी एक-दूसरे के विना अपंग हैं। साधु अपने आत्मानुभव द्वारा प्राप्त ज्ञान श्रावकों को देते हैं, जिस से श्रावक चारित्र के | लिए नींव स्वरूप ज्ञान को प्राप्त होता है। पृच्छ 55 श्रावक साधु को आहारादि दान तथा साधना के अनुकूल उपकरण प्रदान कर के उनकी साधना को निर्विकल्प बनाता है। " मुनि के लिए तीन उपकरण आवश्यक होते हैं ज्ञानोपकरण- संयमोपकरण और शौचोपकरण| ज्ञान का उपकरण शास्त्र है। साधु इस उपकरण से द्रव्य-भाव श्रुतज्ञान की वृद्धि और चारित्र की विशुध्दता प्राप्त करता है। संयम का उपकरण पिच्छिका है। इस उपकरण द्वारा मुनिगण सूक्ष्म और बादर जीवों की रक्षा करते हैं। कमण्डलु शौच का उपकरण है। इस का प्रयोग कर के मुनिराज अपने शरीर की शुद्धि करते हैं ताकि देववन्दना व स्वाध्यायादि कार्य किये जा सकें। अतएव ऐसे उपकरणों का दान करना, साक्षात् मुक्ति प्रदान करने के समान है। जिन में दान देने की शक्ति नहीं हो, वे कम से कम कलियुग में चलते फिरते इन तीर्थंकरों का ( मुनीश्वरों का आदर करते रहें, ताकि अक्षय पुण्य के भाजन बन सकें। सुविधि ज्ञान का प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद. ---------
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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