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________________ -- - पुस् , । २० रत्नमाला पाठ .. - 54 करना, दान्तान नहीं करना और दिन में एक बार भोजन करना. ये मुनियों में चारित्र श्री के मूलभूत अट्ठाईस मूलगुण होते हैं। जो गुण मूलगुणों की शोभा बढ़ाते हैं, मुलगुणों की सुरक्षा करते हैं, वे गुण उत्तरगुण || कहलाते हैं। बारह तप और बाईस परीषह ये कुल चौतीस उत्तरगुण होते हैं। आचार्य वट्टकेर ने लिखा है कि - ते मुलुत्तरसपणा मूलगुणा महलदादि अहवीसा। तवपरिसहादिभेदा चोत्तीसा उत्तर गुणक्खा।। (मूलाचार १/३) अर्थ : ये मूलगुण और उत्तरगुण जीव के परिणाम हैं। महाव्रत आदि मूलगुण अट्ठाईस हैं. बारह तप और बाईस परीषह ये ३४ उत्तरगुण होते हैं। मुनिराज मूलगुण और उत्तरगुणों के परिपालक होते हैं। ३, छदमस्थ ज्ञानराजी : छमस्थ शब्द की परिभाषा करते हुए ब्रह्मदत्त ने लिखा है कि- छद्मशब्ढन ज्ञानदर्शनावरण द्वयं भण्यते, तत्र तिष्ठन्ति इति छद्मस्थाः। (बृहद् द्रव्यसंग्रह -४४) अर्थ : "छद्म इस शब्द से ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण ये दोनों कहे जाते हैं। उस छदम में जो रहे, वे छदमस्थ हैं। आचार्य वीरसेन भी इसी बात को स्वीकार करते हैं। यथाछद्म ज्ञान दृगावरणे तत्र तिष्ठन्तीति छद्मस्था : (धवला १.१८९) एक अन्य परिभाषा देते हुए आ. वीरसेन कहते हैं कि - संसरन्ति अनेन धाति कर्मकलापेन चतसृषु गतिष्विति घाति कर्मकलापः संसारः। तस्मिन् तिष्ठन्तीति संसारस्थाः छद्मस्थाः भवन्ति। (धवला १३/४४) घातिकर्म समूह के कारण जीव चारों गतियों में संसरण करते हैं, वह घाति कर्म समूह संसार है और उस में रहने वाले जीव संसारस्थ अर्थात् छदमस्थ हैं। छद्मस्थ जीवों को क्षायोपशमिक ज्ञान पाये जाते हैं, जिन्हें छमस्थ ज्ञान कहते हैं। मुनीश्वर निरन्तर ज्ञानाराधना करते हैं, फलतः उन का श्रुतज्ञान सातिशय होता है। तप के प्रभाव से उन्हें अवधि एवं मनःपर्यय ज्ञान हो सकता है। अर्थात् मुनिराज दो अथवा तीन अथवा चार ज्ञानों से सुशोभित होते हैं। ऐसे साधुओं के संघ में अर्थात् मुनि-आर्यिका-पावक और श्राविकाओं के समुदाय में अथवा ऋषि-मुनि-यति और अनगार के भेद से चतुस्संघ को प्रासुक द्रव्य प्रदान करना, सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद. - - - -vani
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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