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________________ 3 . . 53 गुप्ता . - २०० रत्नमाला . : 53 १. नर्गन्ध्यपूत : (जो निर्मथता से पवित्र हैं। निर्ग्रन्थाः परिग्रहरहिताः! (मोक्षपाहुड-८०) इसी सो मारने का मार्मिला मानगाती लिखती है कि " बाह्याभ्यन्तर परिग्रह ग्रन्थिभ्यो निष्कान्तः निग्रंथः {नियमसार-४४) अर्थात् जिनकी बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह की ग्रन्थियाँ विनष्ट हो चुकी हैं, वे निग्रंथ हैं। आचार्य जयसेन का कथन है कि - यथाजातरूपधरः व्यवहारेण नग्नत्वं यथाजातरूपं निश्चयेनतु स्वात्मरूपं तदित्थंभूतं यथाजातरूपं धरतीति यथाजातरूपधरः निग्रंथो जात इत्यर्थः। (प्रवचनसार-२०४) अर्थात् - व्यवहार नय से नग्नत्व यथाजातरूप पना है और निश्चय से यानि आत्मा का जो यथार्थ स्वरूप है, वह यथाजातरूप है। साधु इन दोनों को धारण कर निग्रंथ हो। जाला है। ___ आचार्य वीरसेन स्वामी का कथन है कि: ववहारणयं पडुच्च मिच्छतादी गंथो, अभंतर गंथकारणत्तादो। एदस्स परिहरणं णिग्गथत्तं। णिच्छयणयं पडुच्च मिच्छत्तादी गंथो, कम्मबंधकारणत्तादो। तेसिं परिच्चागो णिग्गंथत्तं। (धवला ९/३२३) अर्थात् : व्यवहार नय की अपेक्षा क्षेत्रादिक ग्रन्ध हैं, क्योंकि वे अभ्यन्तर ग्रन्थ के कारण हैं और इनका त्याग करना निर्ग्रन्थता है। निश्चय नय की अपेक्षा मिथ्यात्वादिक ग्रन्थ हैं. । क्योंकि, वे कर्मबन्ध के कारण हैं और इन का त्याग करना निर्ग्रन्थता है। ____ दश प्रकार के बाह्य परिग्रह एवं चौदह आभ्यन्तर परिग्रह इस प्रकार जो चौबीस परिग्रहों से पूर्ण विमुक्त हैं. जो बालकवत् निर्विकार हो चुके हैं, जो दिशाओं के वस्त्र पहनते हैं-ऐसे दिगम्बर मुनिराज नैग्रंथ्यपूत हैं। ____२. मूलोत्तर गुणार्थी : जिन के विना मुनित्व समाप्त हो जाये, ऐसा आचरण मूलगुण | संज्ञा को प्राप्त होता है। आचार्य वसुनन्दि के अनुसार उत्तर गुणों के आधारभूत गुणों को मूलगुण कहते हैं। मूलगुणा उत्तरगुणाधारभूताः। (मूलाचार १/३) मुनियों के २८ मूलगुण हैं। आ, वीरनन्दि लिखते हैं कि - युक्ताः पञ्च महाव्रतैः समितयः पञ्चाक्षरोधाशयाः। पञ्चावश्यकषट्क लुघनवशाचेलक्यमस्नानता।। भू-शय्या स्थिति भुक्ति दन्तकषणं चाप्येक भक्तयता वेवं मलगणाष्ट विंशतिरियं मूलं चरित्रश्रियः।। (आचारसार १/१४१॥ अर्थात : पाँच महाव्रतों से युक्त, पाँच समिति पाँच पंचेन्द्रिय निरोध, छह आवश्यक, | केशलोंच, श्रेष्ठ अचेलकत्व, स्नानत्याग, भूमि पर शयन करना, खड़े हो कर आहार ! सुविधि शाम चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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