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________________ gra: - २० रत्नमाला .. - 23 - लिखा है कि - सरागसंयम-संयमासंयमाकामनिर्जरा बालतपांसि वैवस्य। (तत्त्वार्थसूत्र ६/२०) सराग || संयम, संयमासंयम, अकाम निर्जरा और बाल तप देव आयु के आश्रव के कारण है। सराग संयम की परिभाषा करते हुए आचार्य श्रुतसागर लिखते हैं कि संसार कारण निषेधं प्रत्युद्यतः अक्षीणाशयश्च सराग इत्युच्यते, प्राणीन्द्रियेषु अशुभप्रवृत्तेः विरमणं संयमः पूर्वोत्तस्य सरागस्य संयमः सरागसंयमः महाव्रतमित्यर्थ | (तत्त्वार्थवृत्ति ६/२०) अर्थ : जो संसार के कारणों के त्याग के प्रति उत्सुक हैं परन्तु जिसके मन से राग के संस्कार नष्ट नहीं हुए हैं, वह सराग कहलाता है। प्राणियों और इन्द्रियों में अशुभ प्रवृत्ति | देल्या को संयम कसा है: पूर्वोकशा का संयम ला-संयम है, वा जिसके पूर्वोक्त रागयुक्त संयम है, वह सराग संयम है अर्थात महाव्रत है। __संयम और असंयम रूप भाव संयमासंयम है। आचार्य भास्करनान्दि कहते हैं कि संयमासंयमो देशसंयमः श्रावकधर्मः संयमासंयम का अर्थ देश संयम या श्रावक धर्म इनको नियम से देवायु बन्धती है। आचार्य देव ने श्लोक में "धीधनः विशेषण दिया है। इसका अर्थ है कि बुद्धि ही | जिनका धन हैं, वे व्रत ग्रहण करते हैं अथवा उन्हें तत ग्रहण करना चाहिये-ऐसा उपदेश व्रतों को धारण करने से - १. प्राणी संयम व इन्द्रिय संयम पलता है। २. कषायें कम होती हैं। ३. संकल्प शक्ति का विकास होता है। ४. कर्मबन्ध की न्यूनता व निर्जरा की अधिकता होती है। ५. आत्मानुभूति का मार्ग प्रशस्त होता है। ६. परिणामों में अत्यन्त विशुद्धि होती है। अतएव प्रत्येक आत्मकल्याणेच्छु भव्य को स्व-शक्ति प्रमाण व्रत अवश्य ग्रहण करना | चाहिए। सुविधि शान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद. -
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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