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________________ प्रा . २० रत्नमाला .. - 22 बामा करने का फल महाव्रताणुव्रतयोरुपलब्धि निरीक्ष्यते। स्वर्गेऽन्यत्र न संभाव्यो व्रत लेशोऽपि धीयनैः।। १२. अन्वयार्थ : महाव्रत महाव्रत (और) अणुव्रतयो: अणुव्रत के द्वारा स्वर्ग स्वर्ग में उपलब्धि उत्पत्ति निरीक्ष्यते देखी जाती है अन्यत्र अन्यत्र नहीं देखी जाती (अतः) धी-धने : बुध्दिमानों को लेश : लेश मात्र तो अपि व्रत संभाव्यः ग्रह करना चाहिए। व्रत अर्थ : महाव्रती या अणुव्रती जीव स्वर्ग में ही जाते हैं, अन्यत्र नहीं। अत एव बुद्धिमानों को व्रतसम्पन्न होना चाहिये। भावार्थ : महाव्रत की परिभाषा करते हुए आ. समन्तभद्र लिखते हैं कि - पञ्चानां पापानां हिंसादीनां मनोवचः कार्य :। कृतकारितानुमोदैः त्यागस्तु महाव्रतं महताम् ।। (रत्नकरण्ड प्रावकाचार - ७२) अर्थ : पंच पापों का मन-वचन काय व क़त कारित अनुमोदना से पूर्ण तया त्याग कर | देना यह महा पुरुषों द्वारा आचरित महाव्रत होता है। जो महाव्रत का पालन करते हैं, उन्हें महाव्रती कहते हैं। आत्मशक्ति के अनुदय के कारण महाव्रतों का पालन करना, जिनके लिए अशक्य होता है, उन लोगों के द्वारा एकदेश व्रतों का पालन किया जाता है, वे तती अणुव्रती कहलाते हैं। __ग्रंथकार का सु-स्पष्ट कथन है कि अणुव्रती अथवा महाव्रती अवश्यमेव स्वर्ग में जाते हैं-अन्य गतियों में नहीं। आचार्य उमास्वामी महाराज ने देवगति के आप्नवों के हेतुओं का वर्णन करते हुए Year- - - - - - सुविधि ज्ञान चन्द्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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