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________________ गप्पा, -२० रत्नमाला म . . 107 गुणा 1, - २० रत्नमाला गळ ता. . 107 कहते हैं। उस आत्मतत्त्व का लक्ष्य निज की ओर हो जाता है, तब उसे अन्तरात्मा कहते हैं। अन्तरात्मा की परिभाषा करते हुए आ. कुन्दकुन्द लिखते हैं कि - सिविणे वि ण भुजई विसयाई देहाई भिण्ण भावमई। भुंजइवियप्पस्वो सिवमुहरत्तो दुमज्झिमप्पो सो।। रियणसार . १३३) अर्थ : देहादिक से अपने को भिन्न समझनेवाला जो व्यक्ति स्वप्न में भी विषयों को नहीं भोगता, परन्तु निजात्मा को ही भोगता है तथा शिव सुख में रत रहता है. वह अन्तरात्मा है। जो आत्मलक्ष्य को मन में रखकर बाह्य में गृहस्थोचित सम्पूर्ण क्रियाओं का परिपालन करते हैं, वह निकट भविष्य में मोक्ष को प्राप्त करते हैं। उन्हें दुःखदायक सांसारिक योनियों में परिभ्रमण नहीं करना पड़ता | सुविधि शाम पत्रिका प्रकाशन संस्था, औरंगाबाद.
SR No.090399
Book TitleRatnamala
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
AuthorSuvidhimati Mata, Suyogmati Mata
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size3 MB
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