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________________ यतिका का अा शोध जाति आदि स्मयक उत्पन्न होने में कारण है उसी तरह उसके प्रतिपक्ष भयभावकी उत्पत्तिमें नीच गोत्र अथवा उच्चगांत्रके उदयकी अल्पता भी कारण अवश्य है । हो, मोहकमकी एक प्रकृति मान कषाय जिस तरह स्मयकी उत्पत्तिमें कारण है उसी तरह भयक हनिम भयनीकपाय भी कारना है। जिस तरह भयक होनेसे वागांन्तरायके क्षयोपशमकी न्यूनताकी कारणता मान्य हैं उसी तरह गोत्रकर्म को भी एक कारण अवश्य मानना चाहिय । यह बात मी ध्यानमें रखनी बाहिये कि भय और स्मय एक ही प्रकारकं नहीं हुआ करते। ये कारण भेदों तथा विषयभेदों आदिकं अनुसार नाना प्रकारके हुआ करते हैं । अतएय पूर्वाधम बताये गये प्राठ दोषोंके सम्बन्ध में सामान्य कारण मोह और विशेष कारण क्रमसे वेदनीय श्रादि चारों अघातिकमर्मीको भी समझना चाहिये जैसा कि ऊपर बताया गया है । यह हमारा कथन न ता अयुक्त-युक्तिविरुद्ध ही है और न आगम-पूर्वाचार्यों के विरुद्ध ही है। राग द्वेष और मोह ये तीनों स्पष्टष्टी मोहोदयजनित दोपहैं जिनकाकि गोहके अभाव हो जाने पर मभावहो जाया करताह । पूर्वाधम बताये गये आठ दोषों और 'घ' शब्दके द्वारा मूचित सात दोषांक मध्य में इन तीन दोषोंका उल्लेख इस बातकोस्पष्ट व.रता है कि देहली दीयकन्यायके अनुसार मोहक इन भावांका प्रभाव दोनों ही तरफ पड़ता है। अधाति कर्म जिस तरह मोहके उदयकी अवस्थामें अपना फल देनमें पूरणतया समथ रहा करते है उस तरह उसके अभावकी अवस्थाम नहीं। मोहका अभाव होजानेपर नेदनीय आदि अपातिकम अपना फल देने में जली हुई रस्सीके समान सर्वथा असमर्थ होजाया करते है। इस बलवत्तर अन्तरंग सहायक निमित्तके विना चे अवातिकर्म अपना कुछ भी काय नहीं कर सकते। जिस तरह गद्दीसे उतरा हुशा राजा नाम मात्र के लिये राजा रह जाता है परन्तु वह सताके विना कार्य करने में समर्थ नहीं हुमा करता इसीतरहकी अवस्था हन अघातिकर्मीकी होजाया करतीहै । तथा मोह का क्षय होजानेपर शेष तीनों धातिकर्मोंका भी चय होजाया करता है । अधाति कर्माका अस्तित्व तो दना रहता है परन्तु वे कार्य करने में असमर्थ होजाया करते हैं; किंतु पातिकमे तो अपना अस्तित्व ही खो बैठते हैं। प्रश्न-जिस तरह मोहका क्षय होते ही पातित्रयका चय हो जाया करता है उसी तरह अघातिकर्माका भी क्षय क्यों नहीं हो जाता? जब सब कर्मीका राजा या शिरोमणि मीह ही है तब इसके नष्ट होते ही इसका सारा सैन्य ही नष्ट होजाना चाहिये । घातिकर्म तो नष्ट हो परन्तु अपातिकर्म नष्ट न हो इसका क्या कारण है ? उसर—यद्यपि आठोंही कर्मोंका मूल मोहही है फिरभी इनमें से दो काँका विषय सम्बन्ध विभिन प्रकारका है। आठों ही कमों पर मोहका आधिपत्य रहनेपर भी घातिकर्मोंके साथ उसका सीधा और निकट संबन्ध है क्यों कि मोहके समान बाकी के तीनों घातिकर्ग भी आत्माके अनुजीची गुणोंका घात करनेवाले हैं। प्रतएव कथंचित् तादात्म्य सम्बन्ध रखनेवाले अनुजीवी गुणों
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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