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________________ प्रकासकीय दिगम्बर जैन आगम की परम्परा में तो अनादिकालीन है फिर भी कात के अवसर्पष और अत्सर्पण के कारण इस आगम परम्परा का भी भरत क्षेत्र में अब सर्पण उत्सर्पण होता है। वर्तमान में अभी जवसर्पणी काल चल रहा है। आज से असंख्यात वर्ष पहले भगवान आदिनाथ ने जैन आगम की परम्परा क्ष स्थापन किया था तब से अब तक अस्तित्व कायम है। यह आगम परम्परा दादशांग यापी के मप में भगवान के मन में पावर्मत धी । यह दादशांग वाणी चार अनुयोगों में मांटी गई । |. प्रघमानुयोग 2. करमानुयोग चरणामुधोंग 4. द्रव्यानुयोग । चौबीस तीर्थकर वारत चक्रवर्ती, नव नारायण, नव प्रतिनारायप, नव बलभद्र, इन 63 शलाका पुरुषो का जिन में इतिवृत दिया गया है वह प्रथमानुयोग आगम है । लोक, अलोक युग परिवर्तन चार गति आयि का जिनमें वर्णन है वह करणानुयोग के प्रावक और श्रमणो की विभिन्न चर्चामो का जिनमें उल्लेख है ने चरणानुयोग गन्ध है, जीव, पुगवल, धर्म, अधर्म आदि पट द्रव्य और नव पदार्थ का जिनमे वर्णन है ये द्रव्यानुयोग शास्त्र है । प्रस्तुत रल करण्ड श्रावकाचार चरणानुयोग का गन्य है। इसके मूल ग्रन्य कर्ता तीर्थकर है एवं गषधर है उन्हीं के वचनों का अनुसरण करने वाले आचार्य सामने इस रत्न काण्डमथ की रचना की है। रत्न करण्ड शब्द का अर्थ है रत्नो का भण्डार, ये रत्न सम्यक दर्जन, सभ्य सान सभ्यक चरित्र है । जिन्हे आगम के अनुसार रन्तत्रय कहा जाता है। इन तीनो रत्नों को प्रावक एक देश म्स में पालन करते है एवं साधु इन्हें सर्वदेश म में पालन करते है। रल करण्ठ श्रावकाचार में आपको की चर्चा का विशेष वर्णन है मीतिर इसका नाम रल करण्ड प्रावकाचार स्वमा गया है । इस शान्य को यद्यपि संस्कृत और हिन्दी दोनो भाषाओं में अनुवाद पहले की जा चुकी थी लेकिन फिर भी श्री स्व. पं. खूपचन्द जी शास्त्री ने बु.प. श्री लाल जी की प्रेरणा से की । दिल्ली के गांधी नगर मंदिर में इन दिनों दिनाक 10 से 15 फरवरी 1989 का पंच कन्यापक प्रतिष्ठा का कार्यक्रम सम्पन्न हुक्षा उस समय परम पूज्य षिराज आचार्य श्री 108 दर्शन सागर जी एवं मुनि श्री 108 समता सागर जी महाराज को रत्न त्रय चन्द्रिका की एक प्रति प्राप्त हुई महाराज श्री ने इसकी उपयोगिता प्रावकों के लिए आवश्यक समझकर प्रकाशन हेतु अपनी शुभ सम्मति प्रदान रत्नत्रय चन्द्रिका पुस्तक इस समय उपलब्ध नहीं होने से इस मन्ध का प्रकाशन गांधीनगर दिगम्बर जैन समाज की ओर से प्रकाशित हो रहा है । आशा है पाठक इस ग्रन्य से सवान पाप्त कर सकेगे। बात ब्र. संजय कुमार मुद्रक:- मीन गण्ड मर्दस (२५७८)गली पीपल वाली (२५७८ धर्मपरा दिल्ली-६
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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