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________________ -unaArAurresphurrrr चन्द्रिमा टीका कलीगचा ताक दसरे परम स्थान-मद्गुहिल्वका बोध करानका है । अबएव तान बशिलाम अन्वय क्रमसे चले आयें अपने अपने वाकिम के द्वारा न्यायपूर्वक अपार्जन करके जो अर्थत:-- धन सम्पत्तिको अपेक्षा महान् है, उन गृहोशियों को ही वास्तवमें महा कहा जा सकता है | प्रश्न- क्या जो विपुल सम्पत्तिके धारक है ये महार्थ नहीं हैं ? उत्तर---यदि उक्त गुमारहिन के ल धनकी ही अपेक्षा ही तो उन्हें भी महार्थ कहा जा सकता है । परन्तु यहां तो मानार्गकी मुख्यतया दृष्टि गुणांकी तरफ है । सम्पत्ति और अर्थोपार्जनके उपाय यदि विवक्षित गुणोंमे रहित हैं तो वे उनकी दृष्टि में यादरणीय नहीं है । यदि वे उक्त गुणोंसे युक्त हैं तो ही प्रशंसनीय है । अतएव विवक्षित गुणोंको सुरक्षित रखकर यदि अधेका संचय विपुल प्रमाण भी होता है तो वह भी अन दरणीय नहीं, प्रशस्त है। वीतराग प्राचार्यको धन या सम्पत्तिमद्वप नहीं है, मुगार अनुराग पर है। प्रश्न---ऊपर आनुवंशिकतानी बात कही गई है । परन्तु यदि कोई व्यक्तिगतराम न्यायपूर्वक और अपापोपहनयुक्ति द्वारा बिपुल या अविपुल धनका सग्रह करता है तो क्या यह महान् या महाय नहीं है। उत्तर--न्याय और अपापत्रवृति सदा प्रशंसनीय है। प्रश्न-फिर ! उत्तर--बात यह है कि-आनुवंशिकता भी एक महान गुण है जिसके कि सम्बन्धसे वैयक्तिक गुण भी वास्तवम और अन्तरंमसे अधिक महान बन जाया करते है। यही कारण है कि गुणोंके कारण मानव जानिके किये गये दो भेदोमस आयमि आनुवंशिकताको प्रथम स्थान दिया गया है । जहां वह नहीं है वे म्लेच्छ हैं। वह व्यक्तिगतरूपसे न्यायपूर्वक और अपापप्रवृत्तिरूप जीविकाका साधन करके विपुल या अविपुल अर्थ संग्रह करनेपर आदरणीय होने पर भी आनुवंशिक सद्गृहीको तुलनामें महत्ता प्राप्त नहीं करसकता । सम्यक्त्व विभूपित जीवको भानुवंशिक सद्गृहित्व ही प्राप्त हुआ करता है। ____ मानवतिलकाः-मनुष्यों में जो तिलकने समान है मानवतिलक हैं। मानव भोर सिक्षक दोनों शब्दोंका अर्थ प्रसिद्ध है। जो मनुष्य श्रायु और मनुष्यगति नाम कर्मके उदयसे उत्पन्न हुये हैं, मनुओं कुलकरोंकी संतान हैं, नरक विर्याक् देवमति में न पाये जानेवाले आचार विचारक धारक हैं वे सब भानव मनुष्य हैं। तिलक शब्दकं पो तो अनेक अर्थ होते है परन्तु दो अर्थ प्रसिद्ध और उपयुक्त है । चन्दन आदि द्वारा संस्कार तथा सम्मान प्रादिकं लिये माथेपर की जानेवाली भिन्न भिन्न आकृतियां । नथा प्रधान-मुख्य, जैसे कि यदलतिलक । यहां पर दोनों ही अर्थ उपयुक्त हैं क्योंकि यह शब्द पारित्राज्य नामक नीसरं परमस्थ नका घोतक है। स्था मार्ग मनुष्यांमें चारित्रार्यताको भूचित करनेवाला होने के कारण प्राथान्यको बताता है। देश कुल जाति प्रादिसे विशुद्धि रहनके कारण निर्वाण दीक्षाके योग्य तथा प्रतमंत्रों द्वारा
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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