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________________ रत्नपाराश्रावकाचार उदयसे होने वाले मोक्षमार्गक सर्वथा विरोधी आत्मद्रव्य विषयक मूर्छा परिणाम विशेषकी स्थिति के अस्तित्वको भूचित करनेके लिये दिया गया है। अनगार शब्द से यद्यपि अनेक अर्थ लिये जासकते हैं किन्तु गहापर महावत अथवा मुनिके २८ मूलगुण और उसके लिये आवश्यक सभी वाहा क्रियाओंने पाला करनेवाले साधु तपस्वी का अर्थ ग्रहण करना चाहिये। ___ गृही श्रेयान् निर्मोही मोहिनी मुनेः । यहां पर गृही शरद गृहस्थ के अर्थ में ही प्रयुक्त दुमा है। निर्मोह शब्दका अर्थ किया जा चुका है। मोही शब्दका अर्थ स्पष्ट है। मुनि शब्दका अर्थ यद्यपि आगममें कई प्रकार से बताया गया है। किन्तु यहाँपर उपर्युक्त सामान्य अनमारके अर्थ में ही इस शब्दका प्रयोग समझना चाहिये । श्रेयान् शब्दको अर्थ होता है अतिशय से प्रशस्य । क्योंकि अतिशय अर्थ में ही "प्रशस्म" शब्दकी, 'थ' आदेश और ईयस प्रत्यय होकर इस शब्द की निष्पत्ति होती है। यह शब्द गृहीका विशेषग है। जो कि उस की अतिशय प्रशस्यताको सूचित करना है। प्रशंसाके कारण को निर्मोह विशेषण, तथा किसकी अपेक्षा से उसकी प्रशस्यता विवक्षित है इस बात को "मोहिनो मुनेः" पद स्पष्ट करता है । प्रकृत कारिकामें तीन वाक्य है; जिनमें दो अनुमान वाक्य और एक उनके निष्कर्षको बताने वाला निगमन बाक्य है। यथा--एप गृहस्थी मोक्षमार्गस्थः निर्मोहत्वात् । अर्थात् यह गृहस्थ मोक्ष मार्ग में स्थित है, क्योंकि यह निर्मोह है। २-अयमनगारो नैव मोक्षमार्गस्थो मोहवश्चात् । यह अनगार मोक्षमागमें स्थित नहीं है। क्योंकि यह मोहवान् है ३-तस्मात् मोदिनी मुनेः निर्मोहः गृही श्रेयान् । अर्थान् जो जो निर्मोह होते हैं वे मोक्षमार्ग में स्थित हैं, और जो मोहसहित है वे नियमसे मोचमार्गमें स्थित नहीं है । अतएव यह निश्चित है और सिद्ध है कि मोही मुनिसे निर्मोह गृहस्थ श्रेष्ठ है; क्योंकि वह मोक्षमार्गमें स्थित है। ___ तात्पर्य यह कि मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन ही मुख्य और मूलभूत है, यही बात यहां पताई गई है । यद्यपि गृहस्थाश्रमसे मोक्षपुरुषार्थ की सिद्धि न होकर मुनिपदसे ही हुआ करती है । और गृहीके पदसे मुनिक पदकी यह विशेषता चारित्र पर ही निर्भर है, यह ठीक है, फिर भी देश चारित्र हो या सकलचारित्र, उसकी वास्तविकता सम्यग्दर्शन मूलक ही है । जिस तरह किसी मकानकी स्थिति उसकी नींवकी दृढ़ता पर है; वृक्ष या लता आदि अपने मूलके विना टिक नहीं रहसकते, मानव सृष्टि की परम्परा वीर्यपर निर्भर है; उसी प्रकार चारित्रकी मोक्षके लिये साधनभूत संयम या चारिग्रकी स्थिति भी सम्यग्दर्शन पर ही है । मोक्षका परम्परा कारण देश संयम हो अथवा साक्षात कारण सकल चारित्र हो यदि वह सम्पग्दर्शन पर स्थित है तो ही वह मोक्षका साधन अथवा मोक्षके साधनभूत संघर निर्जराका निमिच कारण माना जा सकता है, अन्यन्या नहीं । इसीलिये ग्रन्थकार यहां बताना चाहते हैं कि पनि
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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