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________________ -rrrrrr-Annar Armererna -man धन्द्रिा टीमनीसा श्लोक इस महान प्रत्युपकारके कारण ही सम्यग्दर्शनकी महत्ता एवं मुख्यताका ख्यापन किया गया है। इसका अर्थ यह नहीं है कि सम्यक विशेषणसे रहित होकर शानचारित्र दर्शनको सम्यग्दर्शन पनानेमें हेतु नही है। यद्यपि यह ठीक है कि श्री १००८ श्रादिनमा भगवान कृषभेश्वरने जन्म लेकर अपने माता पिताको त्रिलोकपूज्य और नियम् से परम निःश्रेयस पदकी प्राप्ति केलिये सर्वथा योग्य बना दिया । किन्तु यह बात भी नो उतनी ही सर्वथा सत्य है कि वे मरदेवी एवं नाभिराय ही उनके जनक है। विवाह करने पर सन्तान उत्पन होती ही है, यह नियम नहीं है, फिर भी विवाह--पतिपत्नी संयोगके विना सन्तानोत्पत्ति नहीं होती, यह नियम है। जिसके विना कार्य न हो यह कारण का अर्थ ऊपर बताया जा चुका है। दर्शन को सम्यक मनानेमें बान चारित्र कारण हैं और शान चारित्र को सम्यक बनाने में सम्यग्दर्शन करण है। यही दोनों की योग्यतामें विशेषना है और महान अन्तर है। प्रश्न-ज्ञान चारित्र, दर्शनको समीचीन पनाने असमर्थ कारण हैं, और सम्यग्दर्शन मान चारित्र को समीचीन बनानम समर्थ कारण है। इससे सामोधमाम सम्यग्दर्शनकी ही उपयोगिता सिद्ध होती है। ज्ञान चारिन की कोई भावश्यकता ही नहीं रह जाती। अथवा उनके समीचीन होने की भी क्या श्रावश्यकता है ? यदि दर्शन सम्यग्दर्शन बन जाता है तो ज्ञान चारित्र समीचीन न भी हों तो क्या हानि होगी? उत्तर-इस प्रश्न का उत्तर देना ही इस कारिकाका मुख्य प्रयोजन है। क्योंकि याचार्य पताना चाहते है कि यदि दर्शन सम्पक भी हो जाय, परन्तु ज्ञान चारित्र यदि सभ्यक न हों को मोक्षमार्ग सिद्ध नहीं हो सकता। आत्मा संसार पर्याय को छोडकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त नहीं हो सकता । क्योंकि वास्तवमें सम्यग्दर्शनके पूर्ण हो जानेपर भी ज्ञान चारित्रकी समीचीनता और पूर्णता का होजाना मोक्षमार्गके समर्थ बनने में शेष रह जाता है। जबतक ये दोनों सम्यक होकर भी पूर्ण नहीं हो जाते तबतक यर्म-मोक्ष मार्ग भी अपूर्ण-अधूरा- असमर्थ ही रहा करता है। पदि सम्यग्दर्शन ही मौकेलिये पर्याप्त कारण हो सो न केवल १४ गुणस्थान ही व्यर्थ हो जायंगे, मोक्षमार्गकी प्ररूपणा भी प्रसिद्ध हो जायगी। जिस तरह जीयके दो भेद हैं, एक संसारी और दूसरा मुक्त । उसी तरह उन दोनों अवस्थाओं की सिद्धि केलिये उपाय भी दो ही पर्याप्त माने जा सकगे; एक मिध्यात्व और दसरा सम्यक्त्व । और सदनुसार दो ही गुपस्थान भी उचित , जा सकेंगे, मियादृष्टि और सम्यग्दृष्टि । इसके सिवाय शायिक सम्यग्दर्शन के पूर्ण होते ही तत्काल मोच भी हो जायगी। किन्तु ऐसा नहीं है । सम्यग्दर्शनके पूर्ण हो जानेपर भी सम्यग्ज्ञान और सम्पक चारित्र की आवश्यकता रहती है। यही कारण है कि इन तीनों में से पूर्वक पूर्ण हो जान १-१६६ पदवीधर जीय नियमसे मोक्ष प्रान किया करते हैं। तीर्थकर २४, पावती १२, नारायण ३, प्रति नारायण , बलभद्र, तीर्थपरों के माता और पिन, कामदेव २४ सर १५, न्द्र ११, नारद - ॥
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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