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रत्नकरएडभावकाचार
___अर्थ-बान और चारित्रकी अपेक्षा दर्शन--सम्यग्दर्शन माधुता समीचीनता एवं उत्कृष्टनाको अधिक व्याप्त करता है। क्योंकि भगवान उस दर्शनको मोक्षमागमें कर्णधार बताते हैं।
प्रयोजन–सम्यग्दर्शनके स्वरूपका बणन पूर्ण होजानेके बाद उस वर्णित विषयकी गौमता मुख्यता या समानताका प्रश्न अत्यन्त आवश्यक होजाता है। और इन तीनमें से किसी भी एक के मालुम होजानेयर उसके हेतुकी जिज्ञासा हुआ करती है। जिनके हृदयमें "कथमेतत्" का प्रश्न या तो उठता नहीं या उठ नहीं सकता उनके लिये हेतुरहित भी कथन पर्याप्त हो सकता है। जो हेतुपूर्वक समझना चाहते हैं उनके लिये ऐये हेतुकी आवश्यकता रहती है कि जो उनके अनुभवमें भी आमके । जो आगमपर श्रद्धा रखने के कारण सम्यग्दृष्टि तो हैं फिर भी यदि वे विशेष जिज्ञासु होनेके कारण यणित विषयका अनुभवपूर्ण समर्थन सुनना या जानना चाहते हैं तो समर्थ वक्ताका भावश्यक कतव्य हो जाता है कि वह श्रोताके सम्मुख पागम के अनुकूल या उससे अविरुद्ध अनुभवमें श्रासकनेवाली युक्तियों को उपस्थित करने का प्रयत्न करे जिससे श्रोताका ज्ञान सशंक न रहकर वह निर्दिष्ट हितमार्ग में भले प्रकार चलने में समर्थ हो सके और उसमें वह रद रह सके।
इस तरह युक्ति अनुभव और आगम तीनोंके द्वारा उपस्थित प्रश्नका उत्सर इस कारिका मारा प्राचार्य देना चाहते हैं और बनादेना चाहते हैं कि यद्यपि धर्म रत्नत्रयात्मक ही है जैसा शिप्रारम्भमें बताया गया है तथा मोक्ष यो संसार निवृश्चिकी हेतुभूतताकी अपेचा तीनोंमें समानता भी है, और अपनार कार्य करने में साधक होनेकेकारण तीनों ही असाधारण विशिष्टता रखते हुए भी समान हैं, इसके सिवाय परम निर्वाण की सिद्धि में एक या दोमें नहीं किन्तु तीनों में परस्पर नान्तरीयकस्य भी है क्योंकि तीनोंमेंसे किसी भी एकके न रहने पर वह सिद्ध नहीं हो सकती। फिर भी इनमेंसे सबसे प्रथम सम्यग्दर्शनके ही वर्णन करनेका कारण यह नहीं है कि किसी भी एकका तो वर्णन प्रथम होना ही चाहिये । अथवा यह बताना भी नहीं है कि मोच की मिलिमें ये क्रमसे उत्तम मध्यम जघन्य कारण है तदनुसार क्रमसे पहले उत्तम कारण रूप सम्यम्दशनका वर्णन यहां कर दिया गया है और अब आगे मध्यम कारण शानका वर्णन करके अन्वमें जघन्य कारण चारित्र का वर्णन किया जायगा । क्योंकि तीनोंमें ही अपने२ अंश कार्यसाच. कताकी अपेक्षा समानता और परस्परमें नान्तरीयकता है यह पान ऊपर कही जा सुकी है। फिर सम्यग्दर्शनके ही प्रथम वर्णन करनेका कारण क्या है ?
इसके उपरमें आचार्य हेतु हेतुमद्भावको बतानेवाले दो वाक्योंके द्वारा उसकी सापेच साधिमानताका उन्नख करते हैं। जिससे वे स्पष्ट करते हैं कि यद्यपि मोक्षमार्ग में तीनों ही साधन
और इस दृष्टि से तीनों में समानता भी है; फिर भी इनमें जो सबसे बडी एक विशेषता है वह यह है कि ज्ञान और चारित्र इन दोनों की अपेचा सम्यग्दर्शन की साधुवा अधिक प्रशस्त है और उलष्ट है । इष्टान्तगर्भित युक्ति या हेतुके द्वारा वे बताना चाहते हैं कि सम्यग्दर्शन और शान