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इंद्रिका टीका इकली सवा शोक ___ एक बात और है, आगममें मनुष्योंको दो भागोंमें विभक्त किया है; एक मार्य दुसरं म्लेच्छ । जिनमें सम्यग्दर्शनादि गुणों के उत्पन्न--प्रकट होने की योग्यता है अथवा जो उन गुपोंसे विभूषित हैं वे सब श्रायर हैं। जिनमें यह योग्यता नहीं पाई जाती वे सब म्लेच्छर हैं। मार्यो के पांच भेद हैं-क्षेत्रार्य जात्यार्य कार्य चारित्रार्य और दर्शनार्य । जो सम्यग्दर्शन से युक्त है वह दर्शनार्य है। ऐसा व्यक्ति अपनेसे नीचेके चार विषयोंके सम्बन्धको लेकर कदाचित् अपने सम्पग्दर्शनको अशुद्ध बना सकता है। पौकि गाको नेत्रही मामा भाने देख प्रान्त आदिके लोगोंके भयसे अथवा इसके अधिपति राजा श्रादिकं भयस सम्यग्दर्शनके विरोधी कुदेवादिकी उपासनामें कदाचित् प्रवृत्त होसकता है । अथवा जातीय सम्बन्धोंके निमित्तसे स्नेहवश वैसा कर सकता है । क्योंकि एक ही जातिमें दो भिन्न २ धर्मों के उपानक होने पर उनका विवाह आदि सम्बन्ध होजानेके बाद ऐसे अवसर सहज ही आसकते हैं कि जिनमें सम्मिलित होनेसे अथवा उनका संस्कार पडजानेपर सम्यग्दर्शनकी यथेष्ट विशुद्धि प्राय नहीं रह सकती । अथवा कर्म-माजीविका के सम्बन्धसे लोभके वश ऐसे भी काम किये जासकते हैं या कदाचित् कोई कर सकता है कि जिसके कारण सम्यग्दर्शन निर्मल नहीं रह सकता है । चौथी बात चारित्रकी है जिससे कि परलोकमें यथेष्ट विषय, अभ्युदय, कल्याण आदिकी प्राशासे यह जीव सम्यग्दर्शनको मलिन करने वाले चरित्रको धारण करके वैसा कर सकता है। अतएव प्राचार्यने बताया है कि सम्यग्दृष्टि
आये पुरुषको अपना सम्यग्दशन निर्मल शुद्ध बनाये रखनेकेलिये इस बात पर अवश्य ही ध्यान रखना चाहिये कि इन चारों ही सम्बन्धों में रहते हुये भी भयादिके द्वारा स्वयं कुदेवादिकोंको प्रशाम विनय आदिकी प्रवृत्ति न करे प्रत्युत विवेकपूर्वक अपने थर्मको सुरक्षित रखकर सफल बनानेका ही उसे यत्न करना चाहिये ।
इसप्रकार सम्यग्दर्शनके स्वरूपका वर्णन यहां तक समाप्त होजाता है । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि संसारकै दुःखोंसे निकालकर जीवको उचम सुखकी अवस्थामें रखनेवाले जिस धर्मका व्याख्यान करनेकी ग्रन्थकी आदिमें प्रतिक्षा कीगई थी वह रत्नत्रयात्मक है, केवल सम्यग्दशेनरूप ही नहीं है । फिर क्या कारण है कि सम्यग्दर्शनका ही सबसे प्रथम पर्सन किया गया ? वीनोंका युगपत् वर्णन हो नहीं सकता, क्रमसे ही जब वर्णन हो सकता है तो तीनों में से चाहे जिसका ग्रन्थकर्ता अपनी इच्छा या रुचिके अनुसार पणन करे । तदनुसार पहसे सम्यग्दर्शनका वर्णन कर दिया गया है। ऐसा है क्या? या और कोई बात है। इस प्रश्नका उत्तर स्वयं प्राचार्य ही आगे की कारिकामें देते हैं
दर्शनज्ञानचारित्रात् साधिमानमुपाश्नुते ।
दर्शनं कर्णधारं तन्मोक्षमार्गे प्रचक्षते ॥३१॥ १-आर्या म्लेच्छाश्च । त० सू० २-गुणैः (सम्यग्दर्शनादिभिः) गुणवद्भिर्वा अर्यन्त इति आर्याः । स.सि । ३ -माना मिलेरछाण मिच्छतं । ति०प० । अथवा "धर्मकर्मवहिभूताः स इमे मोजाका मतामा