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________________ रस्नकरण्डश्रावकाचार प्रश्न-महा पंडित आशापुरजीने तो श्रावककेलिये इन शासन देवोंके पूजन करनेका निषेध किया है। फिर आप इसका समर्थन किसतरह करते हैं ? वे तो कहते हैं कि श्रावणापि पितरी गुरू राजाप्यसंयताः। कुलिङ्गिानः कुदेवाश्च न बन्धास्तेऽपि संपतैः ॥ अर्थात्-मुनि ही नहीं, श्रापकको भी असंयमी माता पिता शिक्षा गुरु दीक्षा गुरु राजा मंत्री भादिक तथा कुलिङ्गी-तापसी या पार्श्वस्थादिक और कुदेव-रुद्रादिक एवं शासनदेवों की पन्दना नहीं करना चाहिये । और मुनियोंको श्रावककी मी वन्दना नहीं करनी चाहिये । फिर पाप तो शासन देवोंके पूजन करने में हानि नहीं बताते । सो सापका कथन ज्या भागमविरुद्ध नहीं है। उचर--हमारा कथन आगम एवं पं० प्राशाधरजीके कथनके विरुद्ध नहीं है। हमने सोमदेव धरीका वाक्य ऊपर उधृत किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि सम्यग्दृष्टियोंको उन शासन देवोंका यहांश देकर सम्मान करना चाहिये । इसके सिवाय उन्होंने तीसरी प्रतिमा का कर्तव्य बताते समय पूजन के अन्तर्गत शासन देवों को अर्घ देने का विधान किया है यथा योगेऽस्मिन् नाकनाथ ज्वलन पितृयते ! नैगमेय प्रस्नेतो. पायो रदेश शेपोडुप सपरिजना यूयमेत्य ग्रहापाः । मंत्रः स्वः स्वधायैरधिगतवलयः स्वासु दिपविष्टाः क्षेपीयः क्षेमदक्षाः कुरुत जिनसवोत्साहिना विनातिम् ।। इसमें पूर्वादिक दश दिशाओं में इन्द्रादिक दशों दिकपालों ( इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत, वरुण, वायु, कुवेर, ईशान, धरणीन्द्र, और चन्द्र ) को क्रमसे संपनी २ दिशामें सपरिवार ( स्वायुषवाहन--युवति-जनसमेत) आकर बैठने के लिये कहा गया है और मंत्रपूर्वक बलि ( यज्ञांश) का प्रदान किया गया है तथा उनसे पूजनमें विन शांति की प्रार्थना की गई है। इसके सिवाय देवसेन नाचार्यने अपने प्राकृत भावसंग्रहमें भी यही बात कही है। वे कहते हैं श्रावाहिऊण देवे सुरवइ-सिहि-काल-- ऐरिए- वरुयो। . पवखे-जखे -सबली सपिय सवासणे ससत्थे य ॥ ४३६ ॥ दाऊण पुज दब्बं बलि चरुयं तहय जएणभायं च। मबसि मंतेहि य वीयक्सर सामजुत्तेहि।। ४४० ॥ भाशय स्पष्ट है कि इन्द्र--अनि--यम-नंत-वरुण-पवन -यच और ईशान इन माउ दिकपालों को अपने २ आयुथ वाहन युवतिजन सहित वीजाक्षर नाम सहित मंत्रों के द्वारा माहान करके पूजा दुरुप वलि यरु तथा यज्ञमाग प्रदान करे। १-अनगार धर्मामृत अवलोक५२। २-पूलिखित यशस्तिलक मा० पू० ३६५
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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