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________________ चौद्रिका टीका बाईसा श्लोक मानस अमृतका पवित्र श्राहार करनेवाले हैं नकि मद्यपान और मांसाहार करनेवाले परन्तु रावण को मद्यमांसादिका सेवन करनेवाला कहते हैं सो सब अज्ञान है उनका अववाद है, महापाप है और लोकमाता है। रावणके समान ही अन्य भी उक्तामुक्त महान् व्यक्तियोंके विषयमें समझना चाहिये । पार्वतीको हिमवान् पर्वतपर राज्य करने वाले राजाकी पुत्री न मानकर साक्षात् पर्वत-पहाड से उत्पन्न हुई मानमा, पार्वती के पुत्र गणेशजी की शरीरके मलसे उत्पत्ति मानना, सीताके पुत्र कुशको कुश नामक बाससे उत्पम हुआ मानना, ईश्वरका मत्स्य कच्छप शकर योनिमें अवतार मानना और वैसा ही विकृत रूप बनाना, मलके कोट का भक्षण प्रादि निकृष्ट क्रियाएं मानना श्रादि सब लोकमूहता के ही प्रकार है। भारतवर्षमें आजकल हुंडावसर्पिणी कालके कारण इस तरह की हजारों मिथ्या मान्यताएं प्रचलित होगई है। जो कि यथार्थतासे परे है और इसीलिये अविवेकमूलक है। इसतरही मान्यताओं को ही लोक मृढता कहते हैं । वास्तविक रहस्यको न जानकर अथवा न मानकर जिन लोगोंने इन बातोंका समर्थन करनेवाले साहित्यका निर्माण किया है उनकी ये वृतियां-ग्रन्थ शास्त्रामास हैं । इसतरहकी प्रवृत्तियों और उनके प्रत्यक ग्रन्थों में केवल वान्य वाचकका अन्तर है। अत एव समन्तभद्र भाचार्य एक ही भेदमें अन्तर्भूत करके मूडताके तीन प्रकार बसारहे हैं। तस्वों-द्रव्योंके स्वरूप संख्या आदि में जो विपर्यास है उसको यदि भिन्न प्रकारकी महता माना जाय और इसको शास्त्राभास नामसे कहाजाय तो एक ही मूढताके दो भेद होजाते हैं एक लोकमूदता और दूसरी शास्त्रामाम मुहता। __ मूढताके चार भेद होजानेसे संख्याधुद्धिकी शंका करना भी ठीक नहीं है। क्योंकि विवद्यावश एक ही विषयको दो भेदों के द्वारा भी बताया जा सकता है। दूसरी बात यह कि आशाथरजीने जिस ढंगसे सम्यग्दर्शन के गुणों का वर्णन किया है उसमें मिनर आषायों के प्रायः सभी पर्खनों की संगतिपूर्वक संग्रह करनेकी भावना दिखाई देती है। यही कारण है कि उन्होंने उमास्वामी भगवान्, शिवकोटी, स्यामी अमृतचन्द्र, स्वामी समन्तभद्र, सोमदेव सूसी आदि के पाक्योंको उधृत किया है और उनके प्राशय को भी स्पष्ट किया है। उन्हों ने प्राराधनाशास्त्र के अनुसार पांच प्रतीचार इस प्रकार बताये है कि-शंका था विधि किन्सा अन्यदृष्टिप्रशंसा और अनायतनसेवा | स्पष्ट ही इनमें तत्वार्थस्त्रोक्त अन्यदृष्टिसंस्तव नामके प्रतीचार को अन्यदृष्टि प्रशंसामें ही अन्तर्भूत करलियागया है और अनायतनसेवा नामका पांचवां प्रतीचार मिन ही बताया है जिसको कि आशाधर जी स्मृतिप्रसिद्ध अतीचार कहते हैं। समन्तभद्र भगवान्ने यहाँपर सम्गदर्शन के २५ मलदोषों में से १६ का ही नामोल्लेख ५-भगवसी भाराधना-सम्मलादीचारा संका पंखा तहेव विदिगंछा। परविहीणपसंसा, मलायम सेपणा देव।।
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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