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________________ चंद्रिका टीका उन्नीमा बीमा लोक मनोरमा रानी आदिका, मूहदृष्टिमें अमृतमतिर प्रादिका, तथा-अनुपगहन अथवा अनुपण आदिमें भी यथायोग्य व्यक्तियों का नाम लिया जा सकता है । इस प्रकरण में एक बात और भी ध्यान देने योग्य है । वह यह कि इस ग्रन्थके कार्या भगधान समन्तभद्र महान तार्किक होनेके सिवाय कविवेधार या आदिकविभी मानेजाते । उनकी रचना जिसतरह साधारण-युक्तिहीन नहीं मानी जा सकती उसी प्रकार नीरम अथवा 'लंकार भी नहीं समझी जा सकती । यहांपर हम थोडा सा इस बात का भी दिग्दर्मा का देना चाहते हैं। ग्रन्थकारने सम्पूर्णग्रन्थमें शान्तरसको३ ही मुख्य रक्खा है । किंतु मालुम होता है कि प्रकल आठ उदाहरणभूत व्यक्तियों का नामोल्लेख करकं शेष आठ रसोंके स्वरूपको भी गौणतया परिल. क्षित कर दिया है जो कि नीचे लिखे अनुसार उन कथाओंसे जाने जा सकते हैं१--ग्रंजनचोरकी कथामें वीररस४ | २-अनन्तमतिकी कथामें शृङ्गार । ३-उद्दायनकी कथामें बीभत्स | ४-रेवती की कथामें अद्भुत । ५-जिनेन्द्रभक्तकी कथामें करुण । ६-वारिपेणकी कथामें हास्य । ७-विष्णुकुमारकी कथाम रोद्र। ---वनकुमारकी कथामें भयानक । इस विषयमें विस्तारभयसे यहां विशेष नहीं लिखा जा सकता। विद्वान् पाठकों को स्वा घटित करलेना चाहिये । केवल इतना ध्यान रखना चाहिये कि कोई रस प्रकृत नायकके अनुकल है तो कोई प्रतिशलजैसे चीररस अंजन चीरके अनुकूल है। यद्यपि पहले उसका उसने दरुपयोग किया है और पीछे सदुपयोग। किंतु शृङ्गार म अनन्तमनिक प्रतिकूल ही है। क्योंकि शृङ्गारकी सभी साधन सामिनियों और परिस्थिविषोंका उसकै उत्सर कोई प्रभाव नहीं पडसा इस १- यशोधर महाराज की माता देखो यशस्तिलक जसहरचरिय आदि । २-नमः समन्तभद्राय महते कविवधसे । यहचावमातेन निर्मिन्नाः कुमताद्रयः । आदि पर यहांपर श्लोकके उत्तरार्ध तथा विवधा शब्दपर क्रमसे दृष्टि दना चाहिये। ३-४ शान्तरस आदि सभी रसांका लक्षण क्रमस निम्नलिखित है मस्यामानसमस्थानः शान्तो निःस्पृहनायकः | रागद्वेषपरित्यागात्सम्यग्नानस्य चोदभवः ।।६।। खत्साहात्मा भवद्वारांखवा धाजिदानतः ।।२१।३ जायापत्योमिथो रत्या चिः श्रृंगार उच्यते ।। अनन पूर्वानुराग एकतरपक्षीयोऽधिगन्तव्यः। तथा धृष्टनायफलक्षण-प्रियं वक्त्यप्रियं तस्याः कुर्वन् यो विकृतः शठः। धृष्टो ज्ञातापराधो पिन विललो अवमानितः ॥१०॥ बीभत्स: स्याज्जुगुप्सात्तः मोद्यावशक्षणान् ॥३१॥ विस्मयात्मानो शेयः स चासंभाव्यवस्तुनः । दर्शनाच्छ्यणाद्वापि प्राणिनामुपजायते ॥४॥शोकोत्थः कमणी शेयत्तत्र भूपातरोदने । वैवस्वोमोहनिदप्रलापाश्रण कीर्तयेत् ॥२मा हासमूलः समाख्यासो हास्पनामा रसा बुधैः । चेष्टांगवेषवैकल्यावाच्यो हास्यस्य चोद्भवः ।।३।। क्रोधात्मको भवेद्रौद्रः क्रोधश्चारिपराभवास् । भीष्मवृतिवेदुनः सामर्षस्तत्र नायकः ||२६भयानको भवेद भौतिप्रकतिपोरवस्खुन । स च प्रायेण वनितानीचबालेषु शस्यते ।।२७il
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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