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चंद्रिका टाका उमासवां सोमवा श्लाक. . मर बातका निश्चय होनेपर उन्हीं तोमदत्ताचार्य के पास जनरपरी दीचा धारण करली !
एक समय की बात है कि चारणऋद्धि थारी दो मुनि जिनमें बडे का नाम अमिनन्दन और छोटे का नाम सुनन्दन था मथुरामें गोचरीकेलिये आये थे। वे मार्ग से जा रहे थे कि दो सीन वर्षकी बाजारमें घूमती हुई एक अनाथ मलिन लड़की को देखकर मुनन्दनने कहा, "हा ! प्राणियांक लिये कर्मका विपाक कितना दर्दर्श है, इस लड़की को इस अवस्थामें ही कितना क्लेश उठाना पडरहा है," यह सुनकर अभिनन्दन भगवान् बोले "हे मुन ! यद्यपि गममें आते ही राजश्रेष्ठ पिताके, तथा प्रसूतिके बाद ही माताके और पालन पोषण करने वाले बन्धुओं के भी असमयमै ही दशमी दशा को प्राप्त होजाने के कारण यह ऋन्या इस समय कष्ट अनुभव कर रही है किन्तु यही यौवन में प्रान्नेपर यहां के राजाकी पड़ रानी होनेवाली है" यह पचन नगर भिक्षाक लिये पाये हुए एक बौद्ध साधुने सुना और यह विचार करके कि "इन मुनियोंका वचन मिथ्या नहीं हो सकता" अपना प्रयोजन सिद्ध करने केलिये उस कन्याको अपने विहारमें लेजाकर रक्खा
और उसका अच्छी तरह पालन पोषण किया। लोग उसको बुद्धदामी कहने लगे और यही उसका नाम पड़गया । यौवनको पाकर बुद्धदासीका सौन्दर्य निसरगया और आकर्षक एवं मनोहर बनगरा। ऐसे ही समय में एक दिन नगरके पूतिक नामक राजा की निगाह उसपर पडी। उसने ना प्रतिनिधि हार सशामरामा कि वह कन्या है या विवाहित कन्या होतो माधुओं से किसी भी तरह उसे प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करने का भी प्रादेश दिया। प्रतिनिधि ने उसे मुख्य पट्टरानी बनाने की शर्तपर साधुनास प्राप्त किया और राजाके अधीन करदिया । राजा पूटिककी प्रथम मुख्य परानी उविलाकी तरफसे हमेशा ही आष्टान्हिक्के दिनों में श्री जिनेन्द्र भगवान् का जो महान् उत्सबके साथ रथ निकला करता था उस को रोक कर उसके बदले बद्ध देवका रथ निकालने की बुरदासी की इच्छा हुई, इसलिये उसने उत्सब के सब उपकरण राजासे स्वयं पहलेही प्राप्त करलिये | उर्मिलाको यह धार्मिक विरोध और अपमान सह्य न हुआ । वह उसी समय भीमदत्त भगवान्के निकट गई और पोली-भगवान सदाकी भांति श्री जिनेन्द्र भगवान्का मेरा रथ निकलेगा तो ही अब मैं अन्न ग्रहण करगी अन्यथा नहीं। यह सुनकर सोमदभने बजकुमार की तरफ देखा तो बजकुमार उसी समय रानीसं बोले उहरी २, तुम्हारे जैसी सम्यग्दृष्टि महिलाको अभीसे हनना आवेगमें आनेका श्रावश्यकता नहीं है। आप हमारी धर्ममाता हैं विश्वास रक्खो-मेरे जैसे पुत्रके रहते हुए श्रीअरिहंत भगवान की पूजामें विध उपस्थित नहीं हो सकेगा। अतएव स्वस्थ रहो ओर सदाकी तरह काम करो।
इस तरह पारवासन देकर वजकुमारने महारानी उर्विलाको विदा किया और स्वयं श्राकाशमार्गसे विजयार्थको प्रयास किया। वहां जाकर भास्कर व आदि विद्याधरोंको सब परिस्थिति समझाकर यह कार्य अच्छी तरह सम्पन्न करनेकेलिये तयार किया। फलतः सभी विद्याधर अपनीर सेना बन्धु पान्थय, परिवार, पूजा सामिग्री, रथयात्राके योग्य सभी तरहके उप