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________________ PRAamrary wrn- - - rrr----- - - - বস্তুগালগালা उपस्थित होजाय तो सम्यग्दृष्टि जीवको तत्त्वज्ञान और विवेकसे काम लेना चाहिये और रेवती रानीकी तरह श्रद्धानसे चलायमान न होकर दृढ रहना चाहिये । ऐसा होनेपर ही सम्पग्दर्शन पूर्व माना जा सकता है यह बताना भी इस कारिका प्रयोजन है। आचार्यों ने सम्यग्दर्शनके पांच प्रतीचार बताये हैं।–१शंका २ कांदा ३ विचिकित्सा ४ अन्यष्टिप्रशंसा और ५ अन्यदृष्टिमम्तव । कहीर पर अन्यदृष्टिसंस्तवकी जगह अनायतनसेवा नामका अतीचार गिनाया है । पाठक नहानुभावोंको बताने की आवश्यकता नही हैं कि सम्यकनर्शनके सार प्रधानसे पहले तीन अंगका सम्बन्ध, इन पांच प्रतीचारों मेंसे प्रथम तीन प्रती. वारोंके साथ स्पष्ट है---शंका कांचा विचिकित्सा इन तीन प्रतीचारोंके निहरमासे ही कमसे निःशंकित निकांक्षित और निर्विचिकित्सा नामके सम्यग्दर्शनके पहले तीन अंग बनते हैं। इसके बाद अन्यदृष्टिप्रशंसा और अन्यदृष्टिसंस्तव अथवा अनायतनसेवन नामके अतीचार शेष रह जाते हैं। अतएव इनके निवृत्त होनेपर ही सम्पग्दर्शनकी पूर्णता हो सकती है अन्यथा नहीं विषय अघ्रा ही न रह जाय इस दृष्टिसे यह बताना भी अत्यन्त आवश्यक था । फलतः स्पष्ट मालुम होता है कि इन शेष अतीचारोंसे रहित रुम्यग्दर्शनके चतुर्थ भंगभूत गुणको बताना मी भावश्यक है इस प्रयोजनको लक्ष्यमें रखकर ही ग्रन्थकर्ताने प्रकृत कारिकाका निर्माण किया है। __प्रशंसा और संस्तवमें मन और वचनकी अपेचा अंतर है । मिथ्याष्टियाँको मनमें अच्छा समझने या माननेको अन्याष्टिप्रशंसा और बचनसे उनको अच्छा बताना प्रत्यष्टिसंस्तव कहाजाता है। प्रकृत कारिका कापथ और कापथस्योंकी मनसे प्रशंसा करने वचनसे उचमता के प्रतिपादन करने तथा शरीरसे सहयोग देने का निषेध करके मन वचन काय एवं त्रियोग पूर्वक सम्यग्दर्शनको मोहित न होने देनेका उपदेश दियागया है । अतएव प्रश्न हो सकता है कि जब पत्रकारने मन और वचनके द्वारा ही प्रशंसा एवं संस्तव किया जानेपर अतीचारका लगना बताया है तर यहाँपर शरीरके सम्पकसे भी अतीचार प्रयवा अंगमंगका निरूपण करना क्या अतिव्याप्त कथन नहीं है ? उत्तर-यह कथन अतिव्याप्त नही है। क्योंकि मन और बचनकी प्रषिकी अपेक्षा शारीरिक प्रवृत्ति अत्यन्त स्थूल है। जब मन और वचनकी ही अन्यथा प्रकृतिका निदेव किया गया है सब शारीरिक विपरीत उक्त प्रवृत्तिका निषेध स्वयं हो जाता है। प्रथवा सूबम विपरीत प्रवृत्तिके निषेधमें ही स्थूल मिध्यप्रवृत्तियोंके निषेधका अन्तर्भाव करलेना चाहिये। प्रश्न- दसरे प्राचार्यानि अनायतनसेवा नामका एक अतीचार स्वतंत्र बताया है जो कि -अतीचारोंशभखनम,, अथवा "देशस्य भंगो शातिचार उक्तः" अर्थात् सम्यग्दर्शन का प्रतादिभशतः सारित होने को अतीचार कहते हैं। -शाकाहाचिकित्सान्यदृष्टेिप्रशंसासंस्तवः सम्पमाप्टेरतीचाराः सर सू०७.२३ । ३-सम्मत्तावीचारो सका कंसा सहेर विदिगिया। परदिट्ठीण प्रसंसा भगायदणसेवणा व भ० भाराधमा । तथा भन० धर्मावत ।
SR No.090398
Book TitleRatnakarand Shravakachar ki Bhasha Tika Ratnatray Chandrika Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages431
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size15 MB
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