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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार तदपहरणार्थ प्रयुक्तो मंत्रोऽक्षरेणापि न्यूनो हीनो 'न हो' नैव 'निहन्ति' स्फोटयति विष वेदनां । ततः सम्यग्दर्शनस्य संसारोच्छेदसाधनेऽष्टांगोपेतत्वं युक्तमेव त्रिमूढापोढत्व वत् । अब कोई आशंका करता है कि सम्यग्दर्शन के आठ अंगों के निरूपण करने का क्या प्रयोजन है क्योंकि अंगों से रहित भी सम्यग्दर्शन में संसार का उच्छेद करने की क्षमता हो सकती है । इस आशंका के उत्तर में आचार्य कहते हैं अंगहीनं-अंगों से हीन (दर्शन) सम्यग्दर्शन ( जन्मसन्ततिम् ) संसार की सन्तति को (छत्त) छेदने में (अलं न) समर्थ नहीं है । (हि) क्योंकि (अक्षरस्यूनः) एक अक्षर से भी हीन (मन्त्र:) मन्त्र (विषवेदनां) विष की पीड़ा को (न निहन्ति) नष्ट नहीं करता है। टीकार्थ-जिन निःशंकितादि अंगों का वर्णन ऊपर किया है उन अंगों से रहित विकलांग सम्यग्दर्शन संसार परम्परा का जन्म-मरण को सन्तति का नाश करने में समर्थ नहीं हो सकता। इसी अर्थ का समर्थन करते हुए मन्त्र का दृष्टान्त देते हैंजिस प्रकार किसी मनुष्य को सर्प ने काट लिया और विष की वेदना सारे शरीर में व्याप्त हो गयी तो उस विष वेदना को दूर करने के लिए-विष उतारने के लिये मान्त्रिक मन्त्र का प्रयोग करता है । यदि उस मन्त्र में एक अक्षर भी कम हो जाय तो जिस प्रकार उस मन्त्र से विष को वेदना शमित-दूर नहीं हो सकती, उसी प्रकार संसार-परिपाटी का उच्छेद करने के लिये आठ अंगों से परिपूर्ण सम्यग्दर्शन ही समर्थ है, एक दो आदि अंगों से रहित विकलांग सम्यग्दर्शन नहीं। विशेषार्थ-जिस तरह शरीर के आठ अंग और उपांग होते हैं उनमें से किसी अंग से अथवा नेत्र, नासिका आदि उपांग से हीन व्यक्ति सज्जाति होकर भी जिनलिंग धारण करने निर्वाण दीक्षा ग्रहण करने का अधिकारी नहीं है; उसो तरह सम्यग्दर्शन के आठ अंग होते हैं । ये अंग सम्यग्दर्शन के मूल हैं । फलतः आठों ही अंगों का वर्णन करने के पश्चात् उसके विशेषण का फल निर्देश करना भी उचित ही नहीं, आवश्यक भी है। किसी भी विशेषण का प्रयोग अन्य किसी भी विषय से व्यावृत्त करने के लिए हुआ करता है। यही बात अष्टांग विशेषण के लिए भी समझनी चाहिए । धर्म का फल कर्म-निवर्हण है अतएव उसके एक भागरूप सम्यग्दर्शन का फल भी कर्म-निबर्हण ही होना चाहिए। कर्मों का नाश हो जाने से जन्म सन्तति का नाश
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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