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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
करते हुए देखा । तदनन्तर छोटे मुनि ने बड़े मुनि से कहा कि 'हाय बेचारी बड़े कष्ट से जीवन बिता रही है।' यह सुनकर बड़े मुनि ने कहा कि 'यह इसी नगरी में राजा की प्रिय पट्टरानी होगी।' भिक्षा के लिए भ्रमण करते हुए एक बोट साधु ने मुनिराज के वचन सुनकर विचार किया कि मुनि का कथन अन्यथा नहीं होगा, इसलिए वह उसे अपने विहार में ले गया और वहाँ अच्छे आहार से उसका पालन-पोषण करने लगा।
एक दिन भरी जवानी में वह चैत्रमास के समय झूला झूल रही थी कि उसे देखकर राजा अत्यन्त विरहावस्था को प्राप्त हो गया। अनन्तर मंत्रियों ने उसके लिए बौद्ध साधु से याचना की । उसने कहा कि यदि राजा हमारे धर्म को ग्रहण करे तो मैं इसे दे दूंगा । राजा ने वह सब स्वीकृत कर उसके साथ विवाह कर लिया। और वह उसकी अत्यन्त प्रिय पट्टरानी बन गयी।
फाल्गुन मास की नन्दीश्वर यात्रा में उविला ने रथयात्रा की । उसे देख उस पट्टरानी ने राजा से कहा कि 'देव ! मेरे बुद्ध भगवान का रथ इस समय नगर में पहले घूमे ।' राजा ने कह दिया कि ऐसा ही होगा ।' तदनन्तर उविला ने कहा कि 'यदि मेरा रथ पहले घूमता है तो मेरो आहार में प्रवृत्ति होगी, अन्यथा नहीं ।' ऐसी प्रतिज्ञा कर वह क्षत्रिय गुहा में सोमदत्त आचार्य के पास गयी। उसी समय वजकुमार मुनि की वन्दना-भक्ति के लिये दिवाकर देव आदि विद्याधर आये थे। बजकुमार मुनि ने यह सब वृत्तान्त सुनकर उनसे कहा कि आप लोगों को प्रतिज्ञा पर आरूढ़ उविला की रथयात्रा कराना चाहिए । तदनन्तर उन्होंने बुद्धदासी का रथ तोड़ कर बड़ी विभूति के साथ उविला को रथयात्रा कराई । उस अतिशय को देखकर प्रतिबोध को प्राप्त हई बुद्धदासी तथा अन्य लोग जैन धर्म में लीन हो गये ।।२०।।
ननु सम्यग्दर्शनस्याष्टभिरंग प्ररूपितैः कि प्रयोजनं ? तद्विकलम्याप्यस्य संसारोच्छेदनसामर्थ्यसम्भवादित्याशक्याह---
नांगहीनमलं छेत्तु दर्शनं जन्मसन्ततिम् ।
न हि मन्त्रोऽक्षरन्यूनो निहन्ति विषवेवनां ॥२१॥
'दर्शनं कर्तृ' । 'जन्मसन्तति' संसारप्रबन्धं । 'छेत्त' उच्छेदयितु 'नालं' न समर्थ । कथंभूतं सत् 'अंगहीन' अंगैनिःशंकितत्त्वादिस्वरूपींनं विकलं । अस्यवार्थस्य समर्थनार्थ दृष्टान्तमाह--'न हि' इत्यादि । सर्पादिदष्टस्य प्रसृत सर्वागविषवेदनस्य