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________________ ६६ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार तत उविला वदति 'मदीयो रथो यदि प्रथमं भ्रमति तदाहारे मम प्रवृत्तिरन्यथा निवृत्तिरिति प्रतिज्ञां गृहीत्वा क्षत्रियगुहायां सोमदत्ताचार्य पार्श्वे गता । तस्मिन् प्रस्तावे बजूकुमारमुनेर्वन्दनाभक्त्यर्थमायाता दिवस देदादयो धावृत्ताश्रुत्वा वज्रकुमार मुनिना ते भणिताः । उविलायाः प्रतिज्ञारूढाया रथयात्रा भवद्भिः कर्तव्येति । ततस्तं द्धदासी रथं भक्त्वा नानाविभूत्या उबिलाया रथयात्रा कारिता । तमतिशयं दृष्ट्वा प्रतिबुद्धा बुद्धदासी अन्ये च जना जिनधर्मरता जाता इति ॥ २० ॥ वज्रकुमार मुनि की कथा हस्तिनापुर में बल नामक राजा रहता था । उसके पुरोहित का नाम गरुड़ था | गरुड़ के एक सोमदत्त नामका पुत्र था । उसने समस्त शास्त्रों का अध्ययन कर अहिच्छत्रपुर में रहने वाले अपने मामा सुभूति के पास जाकर कहा कि मामाजी ! मुझे दुर्मुख राजा के दर्शन करा दो। परन्तु गर्व से भरे हुए सुभूति ने उसे राजा के दर्शन नहीं कराये । तदनन्तर हठधर्मी होकर यह स्वयं ही राजसभा में चला गया । वहाँ उसने राजा के दर्शन कर आशीर्वाद दिया और समस्त शास्त्रों की निपुणता को प्रकट कर मन्त्री पद प्राप्त कर लिया। उसे वैसा देख सुभूति मामा ने अपनी यज्ञदत्ता नामकी पुत्री विवाहने के लिये दे दी । एक समय वह यज्ञदत्ता जब गर्भिणी हुई तब उसे वर्षाकाल में आम्रफल खाने का दोहला हुआ । पश्चात् बाग-बगीचों में आम्रफलों को खोजते हुए सोमदत्त ने देखा कि जिस आम्रवृक्ष के नीचे सुमित्राचार्य ने योग ग्रहण किया है, वह वृक्ष नाना फलों से फला हुआ है। उसने उस वृक्ष से फल लेकर आदमी के हाथ घर भेज दिये और स्वयं धर्म श्रवण कर संसार से विरक्त हो गया तथा तप धारण कर आगम का अध्ययन करने लगा। जब वह अध्ययन कर परिपक्व हो गया तब नाभिगिरि पर्वत पर आतापन योग से स्थित हो गया । इधर यज्ञदत्ता ने पुत्र को जन्म दिया। पति के मुनि होने का समाचार सुन कर वह अपने भाई के पास चली गयी । पुत्र की शुद्धि को जानकर वह अपने भाइयों के साथ नाभिगिरि पर्वत पर गयी। वहां आतापन योग में स्थित सोमदत्त मुनि को देखकर अत्यधिक क्रोध के कारण उसने वह बालक उनके पैरों में रख दिया और गालियाँ देकर स्वयं घर चली गयी ।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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