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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
कहा कि महामुनियों पर महान् उपसर्ग हो रहा है। यह सुनकर पुष्पधर नामक विद्याधर क्षुल्लक ने पूछा कि 'कहाँ किन पर महान् उपसर्ग हो रहा है ?' उन्होंने कहा कि हस्तिनागपुर में अकम्पनाचार्य आदि सातसौ मुनियों पर । उपसर्ग कैसे दूर हो सकता है ? ऐसा क्षुल्लक द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 'धरणीभूषण पर्वत पर विक्रिया ऋद्धि के धारक विष्णुकुमार मुनि स्थित हैं। वे उपसर्ग को नष्ट कर सकते हैं। यह सुन क्षुल्लक ने उनके पास जाकर सब समाचार कहे । 'मुझे विक्रिया ऋद्धि है क्या ?' ऐसा विचार कर विष्णुकुमार मुनि ने अपना हाय पसारा तो वह पर्वत को भेद कर दूर तक चला गया। पश्चात विक्रिया का निर्णय कर उन्होंने हस्तिनागपुर जाकर राजा पद्म से कहा कि तुमने मुनियों पर उपसर्ग क्यों कराया ! आपके कुल में ऐसा कार्य किसी ने नहीं किया। राजा पद्म ने कहा कि क्या करूं मैंने पहले इसे वर दे दिया था ।
____ अनन्तर विष्णकुमार मुनि ने एक बौने ब्राह्मण का रूप बनाकर उत्तम शब्दों द्वारा वेद पाठ करना शुरू किया । बलि ने कहा कि तुम्हें क्या दिया जावे ? बौने ब्राह्मण ने कहा कि तीन डग भूमि दे दो। 'पगले ब्राह्मण ! देने को तो बहुत है और कुछ मांग' इस प्रकार बार-बार लोगों के कहे जाने पर भी वह तीन डस भूमि ही मांगता रहा । ततपश्चात् हाथ में संकल्प का जल लेकर जब उसे विधिपूर्वक तीन डग भूमि दे दी गई तब उसने एक पैर तो मेरु पर रखा, दूसरा पैर मानुषोत्तर पर्वत पर रखा और तीसरे पैर के द्वारा देव विमानों में क्षोभ उत्पन्न कर उसे बलि की पीठ पर रखा तथा बलि को बांध कर मुनियों का उपसर्ग दूर किया। तदनन्तर वे चारों मन्त्री राजा पद्म के भय से आकर विष्णकुमार मुनि तथा अकम्पनाचार्य आदि मुनियों के चरणों में संलग्न हए-चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे। वे मन्त्री श्रावक बन गये।
प्रभावनायां वज्रकुमारो दृष्टान्तोऽस्य कथा
हस्तिनागपुरे बलराजस्य पुरोहितो गरुडस्तत्पुत्रः सोमदत्तः तेन सकलशास्त्राणि पठित्वा अहिच्छत्रपुरे निजमामसुभूतिपावें गत्वा भणितं । माम! मां दुर्मखराजस्य दर्शयेत् । न च गवितेन तेनदर्शितः । ततो ग्रहिलो भूत्वा सभायां स्वयमेव तं दृष्ट्वा आशीर्वाद दत्वा सर्वशास्त्रकुशलत्वं प्रकाश्य मंत्रिपदं लब्धवान् । तं तथाभूतमालोक्य सुभुतिमामो यज्ञदत्तां पुत्री परिणेतु दत्तवान् । एकदा तस्या गर्भिण्या वर्षाकाले आम्रफलभक्षणे दोहलको जातः । ततः सोमदत्तन तान्युद्यानवने अन्वेषयता यत्रावक्षे