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________________ [ ६३ अवस्था में कील दिया । प्रातःकाल सब लोगों ने उन मन्त्रियों को उसी प्रकार कीलित देखा । मन्त्रियों की इस कुचेष्टा से राजा बहुत क्रुद्ध हुआ, परन्तु ये मन्त्री वंशपरंपरा से चले आ रहे हैं' यह विचार कर उन्हें मारा तो नहीं सिर्फ गर्दभारोहण आदि कराकर निकाल दिया । रत्नकरण्ड श्रावकाचार । तदनन्तर, कुरुजांगलदेश के हस्तिनागपुर नगर में राजा महापद्म राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम लक्ष्मीमती था उनके दो पुत्र थे- पद्म और विष्णु । एक समय राजा महापद्म पद्मनामक पुत्र को राज्य देकर विष्णू नामक पुत्र के साथ श्रुतसागरचन्द्र नामक आचार्य के पास मुनि हो गये । वे बलि आदिक आकर पद्मराजा के मन्त्री बन गये । उसी समय कुम्भपुर के दुर्ग में राजा सिंहबल रहता था। वह अपने दुर्ग के बल से राजा पद्म के देश में उपद्रव करता था। राजा पद्म उसे पकड़ने की चिन्ता में दुर्बल होता जाता था । उसे दुर्बल देख एक दिन बलि ने कहा कि देव ! दुर्बलता का क्या कारण है ? राजा ने उसे दुर्बलता का कारण बताया। उसे सुनकर तथा आज्ञा प्राप्त कर बलि वहाँ गया और अपनी बुद्धि के माहात्म्य से दुर्ग को तोड़कर तथा सिंबल को लेकर वापस आ गया। उसने राजा पद्मको यह कहकर सिंबल को सौंप दिया कि यह वही सिंहबल है। राजा पद्म ने सन्तुष्ट होकर कहा कि तुम अपना वाञ्छित वर मांगो | बलि ने कहा कि जब मांगूगा तब दिया जावे । तदनन्तर कुछ दिनों में विहार करते हुए वे अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनि उसी हस्तिनागपुर में आये। उनके आते ही नगर में हलचल मच गयी । बलि आदि मन्त्रियों ने उन्हें पहचान कर विचार किया कि राजा इनका भक्त है । इस भय से उन्होंने उन मुनियों को मारने के लिए राजा पद्म से अपना पहले का वर मांगा कि हम लोगों को सात दिन का राज्य दिया जावे । तदनन्तर राजा पद्म उन्हें सात दिन का राज्य देकर अन्तःपुर में चला गया । इधर बलि ने आतापनगिरि पर कायोत्सर्ग से खड़े हुए मुनियों को बाड़ी से वेष्टित कर मण्डप लगा यज्ञ करना शुरू किया । झूठे सकौरे, बकरा आदि जीवों के कलेवर तथा धूम आदि के द्वारा मुनियों को मारने के लिए बहुत भारी उपसर्ग किया। मुनि दोनों प्रकार का संन्यास लेकर स्थिर हो गये । तदनन्तर मिथिला नगरी में आधी रात के समय बाहर निकले हुए श्रुतसागरचन्द्र आचार्य ने आकाश में काँपते हुए श्रवण नक्षत्र को देखकर अवधिज्ञान से जानकर
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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