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________________ ( १७ ) गुरुवर आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज की कृपा से हुआ जिन्होंने मुझे आर्यिका दीक्षा देकर उद्धार किया, तथा स्व. आचार्यकल्प श्रुतसागरजी महाराजजी की सदैव अनुकम्पा रही इनके चरण सानिध्य में रहकर आगम के अध्ययन का सौभाग्य प्राप्त हुआ एवं ग्रन्थों के कार्य करने की प्रेरणा मिली ऐसे महान सन्तों के चरणों में विनम्र शत-शत नमन है । संसार सिन्धु से पार करने के लिए हस्तावलम्बन स्वरूप विश्व विज्यात धर्म प्रभाबिका सरस्वती की प्रतिमूर्ति आर्यिका रत्न ज्ञानमति माताजी जो मेरी आद्यगुरु हैं जिन्होंने संरक्षण एवं अध्ययन कराकर मुझ पर अनन्त उपकार किया है, मैं परमोपकारिणी गुरुमाता के चरणों में वन्दन करते हुए यह भावना करती हूं कि इनकी सदैव कृपा रहे । लेखन कार्य कराने की प्रेरणा आर्यिका श्रुतमतीजी को सदा रहा करती है ये स्वस्थ रहकर स्वयं अध्ययन करते हुए जिनवाणी की सेवादि कार्यों में सदा भाग लें यह मेरी हार्दिक पावना है। ___ इस ग्रन्थ के संशोधक डा० चेतनप्रकाश पाटनी हैं जिन्होंने अनेक ग्रन्थों का संशोधन एवं संपादन किया है आपको जिनवाणी के प्रकाशन की विशेष अभिरुचि है, आपके माध्यम से अनेक महत्वपूर्ण कृतियां प्रकाशित हुई हैं। मेरी यह भावना एवं आशीर्वाद है कि ये सतत जिनवाणी माता की सेवा करके सम्यग्ज्ञान की गरिमा को बढ़ाते रहें। -आ० आदिमती
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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