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रत्नकरण्ड श्रावकाचार
[ ५१ विवाह करने का त्याग है। ऐसा कहकर वह समस्त कलाओं के विज्ञान की शिक्षा लेती हुई रहने लगी।
एक बार जब वह पूर्ण यौवनवती हो गई तब चैत्र मास में अपने घर के उद्यान में झूला झूल रही थी। उसी समय विजयाधपर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित किन्नरपुर नगर में रहने वाला कुण्डल-मण्डित नामक बिद्याधरों का राजा अपनी सुकेशी नामक स्त्री के साथ आकाश में जा रहा था। उसने अनन्तमती को देखा । देखते ही वह विचार करने लगा कि इसके बिना जीवित रहने से क्या प्रयोजन है ? ऐसा विचार कर वह अपनी स्त्री को तो घर छोड़ आया और शोघ्र ही आकर विलाप करती हुई अनन्तमती को हरण करके ले गया । जब वह आकाश में जा रहा था तब उसने अपनी स्त्री सुकेशी को वापस आहे. देशा । देखते ही बह गनीज़ हो । यः सौ. उसने पर्णलघु विद्या देकर अनन्त मती को महाअटवी में छोड़ दिया । वहां उसे रोती देख भीम नामक भीलों का राजा अपनी बसतिका में ले गया और 'मैं तुम्हें प्रधान रानी का पद देता हैं, तुम मुझे चाहो' ऐसा कहकर रात्रि के समय उसके न चाहने पर भी उपभोग करने को उद्यत हुआ। व्रत के माहात्म्य से वनदेवता ने भीलों के उस राजा की अच्छी पिटाई की । यह कोई देवी है ऐसा समझकर भीलों का राजा डर गया और उसने वह अनन्तमती बहुत से बनिजारों के साथ ठहरे हुए पुष्पक नामक प्रमुख बनिजारे के लिए दे दी। प्रमुख बनिजारे ने लोभ दिखाकर विवाह करने की इच्छा की, परन्तु अनन्तमती ने उसे स्वीकृत नहीं किया । तदनन्तर वह बनिजारा उसे लाकर अयोध्या की कामसेना नामकी बेश्या को सौंप गया । कामसेना ने उसे बेश्या बनाना चाहा, पर वह किसी भी तरह वेश्या नहीं हुई। तदनन्त र उस वेश्या ने सिंहराज नामक राजा के लिए वह अनन्तमती दिखाई और वह राजा रात्रि में उसे बलपूर्वक सेवन करने के लिए उद्यत हआ, परन्तु उसके व्रत के माहात्म्य से नगरदेवता ने राजा पर उपस । किया, जिससे डरकर उसने उसे घर से निकाल दिया।
स्वेद के कारण अनन्तमती रोती हुई बैठी थी कि कमलश्री नामकी आयिका ने 'यह श्राविका है' ऐसा मानकर बड़े सम्मान के साथ उसे अपने पास रख लिया । तदनन्तर अनन्तमती का शोक भुलाने के लिए प्रियदत्त सेठ बहुत से लोगों के साथ बंदना भक्ति करता हुआ अयोध्या गया, और अपने साले जिनदत्त सेठ के घर संध्या के समय पहुँचा। वहाँ उसने रात्रि के समय पुत्री के हरण का समाचार कहा । प्रातःकाल