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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार इस प्रकार सम्यग्दर्शन के आठ अंगों का वर्णन पूर्ण हुआ ।।१८।। इदानीमुक्त निःशंकितत्वाद्यष्टगुणानां मध्ये कः केन गुणेन प्रधानतया प्रकटित इति प्रदर्शयन् श्लोकद्वयमाह तावदञ्जन चौरोऽङ्ग ततोऽनन्तमतिः स्मृता । उद्दायनस्तृतीयेऽपि तुरीये रेवती मता ॥१९॥ ततो जिनेन्द्र भक्तोऽन्यो वारिषेणस्ततः परः । विष्णुश्च वजनामा च शेषयोर्लक्ष्यतां गताः ॥२०॥ तावच्छब्दः क्रमवाची, सम्यग्दर्शनस्य हि निःशंकितत्वादीन्यष्टांगान्युक्तानि तेषु मध्ये प्रथमे निःशंकितत्वेऽगस्वरूपे तावल्लक्ष्यतां दृष्टान्ततां गतोऽजनचोरः स्मृतो निश्चितः । द्वितीयेऽगे निष्कांक्षितत्वे ततोऽञ्जन चोरादन्यानन्तमतिलंक्ष्यतां गता मता । तृतीयेंगे निर्विचिकित्सत्वे उहायनो लक्ष्यतां गतो मतः । तुरीये चतुर्थेऽले अमूढदृष्टित्वे रेवती लक्ष्यतां गता मता । ततस्तेभ्यश्चतुर्थेभ्योऽन्यो जिनेन्द्रभक्त श्रेष्ठी उपगहने लक्ष्यतां गतो मतः। ततो जिनेन्द्रभक्तात् परो बारिषेण: स्थितीकरणे लक्ष्यतां गतो मतः । विष्णुश्च विष्णुकुमारो वज्रनामा च वज्रकुमार: शेषयोर्वात्सल्य प्रभावनयोर्लक्ष्यतां गतो मतौ । गता इति बहुवचन निर्देशो दृष्टान्तभूतोक्तात्मव्यक्तिबहुत्वापेक्षया । अब ऊपर कहे हुए निःशंकितत्वादि आठ गुणों में कौन पुरुष किस गुण के द्वारा प्रसिद्ध हुआ है; यह दिखलाते हुए दो श्लोक कहते हैं ___ तावत्-क्रम से ( प्रथमे ) प्रथम अंग में ( अञ्जनचोर: ) अञ्जन चोर ( स्मृतः ) स्मृत है। ( तत: ) तदनन्तर द्वितीय अंग में ( अनन्तमती ) अनन्तमती (स्मता) स्मृत है । (तृतीये अपि अंगे) तृतीय अंग में (उद्दायन:) उद्दायन नामका राजा (मतः) माना गया है । (तुरीये) चतुर्थ अंग में (रेवती) रेवती रानी (मता) मानी गई है। (ततः) तदनन्तर पञ्चम अंग में ( जिनेन्द्र भक्तः ) जिनेन्द्र भक्त सेठ, (ततः अन्यः) उसके बाद छठे अंग में (वारिषेणः) वारिषेण राजकुमार, (ततः पर:) उसके बाद (शेषयोः) सप्तम और अष्टम अंग में (विष्णुश्च) विष्णुकुमार मुनि और (वज्रनामा च) वज्रकुमार मुनि (लक्ष्यतां गतौः) प्रसिद्धि को प्राप्त हुए हैं । टीकार्थ-सम्यग्दर्शन निःशंकितादि आठ अंगों से युक्त हैं, उन आठ अङ्गों में से पहले निःशंकित अङ्ग में अञ्जन चोर का दृष्टान्त निश्चित किया गया है। दूसरे
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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