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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार [ ३७ और ये सभी वस्तुएँ अशुचि ही हैं। परन्तु सम्यग्दृष्टि वस्तुतत्त्व के यथार्थ स्वरूप को जानता है, इसलिए अपवित्र पदार्थों एवं शरीर की मलिनता और दुर्गधता को देखकर सुनकर ग्लानि नहीं करते हैं 1 तथा और भी अशुभकर्मजन्य अवस्थाओं को देखकर मन में खेद-खिन्न नहीं होते, इसलिए उनके निविचिकित्सा अंग होता है। जो इस अंग का परिपालन करते हैं उनके ही दयाभाव होता है, उनके ही वात्सल्य भाव होता है । सम्यग्दृष्टि गुणग्राही एवं गुणों का समादर करने वाला हुआ करता है। इस प्रकार स्वभाव से अशुचि होते हुए भी शरीर से आत्महित सिद्ध हो जाता है और मनुष्यजन्म को सार्थकता सिद्ध हो जाती है ।।१३।। अधुना सद्दर्शनस्यामूढदृष्टित्वगुणं प्रकाशयन्नाह कापथे पथि दुःखानां कापथस्थेऽप्यसम्मतिः । असंपृक्तिरनुत्कोतिरमूढा दृष्टिरुच्यते ॥१४॥ अमूढा दृष्टिरमूढल्वगुणविशिष्टं सम्यग्दर्शनं । का? 'असम्मतिः' न विद्यते मनसा सम्मतिः श्रेयः साधनतया सम्मननं यत्र दृष्टौ। क्व ? 'कापथे' कुत्सितमार्ग मिथ्यादर्शनादौ । कथंभूते ? 'पथि' मार्गे । केषां ? 'दु:खाना' । म केवलं तत्रवासम्मतिरपि तु 'कापथस्थेऽपि' मिथ्यादर्शनाद्याधारेऽपि जीवे । तथा 'असंपृक्ति:' न विद्यते सम्पृक्तिः कायेन नखच्छोटिकादिमा अंगुलिचालनेन शिरोधूननेन बा प्रशंसा यत्र । 'अनुत्कीतिः' न विद्यते उत्कीतिरुत्कीर्तनं वाचा संस्तवनं यत्र । मनोवाक्कायमिथ्यादर्शनादीनां तद्वतां चाप्रशंसाकरणममूढ़ सम्यग्दर्शनमित्यर्थः ॥१४।। आगे सम्यग्दर्शन के अमूढ़दृष्टित्व गुण को प्रकट करते हुए कहते हैं (या दृष्टि:) जो दृष्टि, (दुःखानां) दुःखों के (पथि) मार्ग स्वरूप (कापथे) मिथ्यादर्शनादिरूप कुमार्ग में और ( कापथस्थे अपि ) कुमार्ग में स्थित जीव में भी (असम्मति :) मानसिक सम्मति से रहित (असंपृक्तिः) शारीरिक सम्पर्क से रहित और (अनुत्कोतिः) वाचनिक प्रशंसा से रहित है वह ( अमूढादृष्टिः ) मूढ़ता रहित दृष्टि अर्थात् अमूहद्दष्टि नामक गुण (उच्यते) कहा जाता है । टोकार्य--'कुत्सितः पन्था कापथः तस्मिन् कापथे' कापथ का अर्थ खोटामार्गकुमार्ग होता है मिथ्यादर्शनादि संसार-भ्रमण के मार्ग होने से कुत्सितमार्ग कहलाते हैं।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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