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________________ ३३० ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार स्वभाव में लीन रहता है, वह ब्रह्मचारी है। अर्थात् निश्चय से तो आत्मा में रमण करने वाला ब्रह्मचारी है, और व्यवहार से जो स्त्री मात्र के सेवन का त्यागी है, वह ब्रह्मचारी है । स्त्री मात्र से आशय केवल मनुष्य जाति की स्त्रियों से ही नहीं है, अपितु देवांगना और पशु स्त्रियां तथा काष्ठ, पाषाण आदि में निमित्त एवं चित्रों में अंकित प्रतिकृतियाँ भी ली जाती हैं। उनके सेवन का त्याग काय मात्र से नहीं अपितु मनबचन से भी उनके सेवन का त्याग होना चाहिए। जिस पदार्थ से राग घटाना हो उसके बीभत्सस्वरूप का चिन्तन करना आवश्यक होता है। यहां शरीर से राग घटाना है इसलिये आचार्य ने शरीर की अपवित्रता एवं इसके बीभत्सरूप का वर्णन किया है । वास्तविक दृष्टि से विचार किया जाय तो शरीर घृणा का ही स्थान है क्योंकि इसकी उत्पत्ति माता-पिता के शुक्रशोणितरूप अपवित्र उपादान से हुई है । यह अपवित्रता का कारण है, इसके नव द्वारों से सदेव अपवित्र मल झरता रहता है, यह दुर्गन्धयुक्त है, तथा देखने वालों को भी ग्लानि उत्पन्न करने वाला है । इस प्रकार शरीर की अपवित्रता का विचार कर शरीर से राग घटाकर विषय सेवन से निवृत्त हो जाना ब्रह्मचारी का लक्षण है। अत: ब्रह्मचारी को शरीरादि के राग को घटाकर आत्मसाधना के लिए अपने स्वरूप की ओर दृष्टि करनी चाहिए । शरीर के यथार्थ स्वरूप का विचार कर जो ऐसे शरीर के प्रति उत्पन्न हुई काम वासना से विरक्त होता है वह सप्तम प्रतिमाधारी ब्रह्मचारी कहलाता है। यह अपनी विवाहिता स्त्री का भी सेवन नहीं करता, राग उत्पन्न करने वाले वस्त्राभरण नहीं पहनता, शृगारकथा, हास्यकथा, काव्य नाटकादि का पठन श्रवण यानि रागवर्धक सभी वस्तुओं का त्याग कर देता है । निरतिचार ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों का नाम लेने मात्र से ब्रह्मराक्षस आदि कर प्राणी भी शान्त हो जाते हैं, देवता भी सेवकों की तरह व्यवहार करते हैं, तथा उन्हें विद्या और मन्त्र भी सिद्ध हो जाते हैं ।।२२।।१४३॥ इदानीमारम्भविनिवृत्तिगुणं श्रावकस्य प्रतिपादयन्नाह सेवाकृषिवाणिज्यप्रमुखादारम्भतो व्युपारमति । प्राणातिपातहेतोर्योऽसावारम्भविनिवृत्तः ॥२३॥
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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