SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रलकरण्ड श्रावकाचार [ ३२७ प्रत्येक कहते हैं। ऐसी वनस्पति को पंचमप्रतिमा का धारी पर से भी छूने में ग्लानि करता है। महापुराण में ब्राह्मण वर्ण की उत्पत्ति बतलाते हुए कहा है कि भरतचक्रवर्ती ने परीक्षा के लिए मार्ग में हरित घास बिछवा दी थी। तो जो दयालु विचारवान आगन्तुक थे वे उस पर चलकर नहीं आये। भरत ने उनसे इसका कारण पूछा, तो वे बोले हे देव ! हमने सर्वज्ञ देव के वचन सुने हैं कि हरित अंकुर आदि में अनन्त जीव रहते हैं। इसलिये पाँचवीं प्रतिमा धारण करने वाले सचित्त विरत को दयामूति कहा है। सचित्त विरत श्रावक की दो विशेषताएं आश्चर्य पैदा करने वाली हैं-एक उनका जिनागम के प्रामाण्य पर विश्वास और दूसरे उनका जितेन्द्रियपना । जिस वनस्पति में जन्तु दृष्टिगोचर नहीं होते, उसको भी न खाना उनकी प्रथम विशेषता का समर्थन करता है। और प्राण चले जाने पर भी न खाना उनकी दूसरी विशेषता का समर्थन करता है। भोमोपभोग परिमाण नामक शोल के अतिचाररूप से सचित्त भोजन व्रत प्रतिमाधारी के लिए त्याज्य कहा था, किन्तु यहाँ खाये जाने वाले सचित्त द्रव्य में रहने वाले जीवों के मरण से भयभीत पंचम प्रतिमाधारी श्रावक उस सचित्त भोजन का व्रत रूप से त्याग कर देता है ॥२०॥१४१।। अधुना रात्रिभुक्तिविरतिगुणं श्रावकस्य व्याचक्षाण: प्राहअन्नं पानं खाद्यं लेां नाश्नाति यो विभावर्याम् । स च रात्रिभुक्तिविरतः सत्वेष्वनुकम्पमानमनाः ॥२१॥ स च श्रावको । रात्रिमुक्तिविरतोऽभिधीयते । यो विभावर्या रात्री । नाश्नाति न भुक्ते । किं तदित्याह-अन्नमित्यादि-अन्न भक्तमुद्गादि, पानं द्राक्षादिपानकं, खाद्यं मोदकादि, लेह्य रत्वादि । किविशिष्टः ? अनुकम्पमानमनाः सकरुणहृदय: । केषु ? सत्वेषु प्राणिषु ॥२१॥ अब श्रावक के रात्रिभुक्तिविरति गुण की व्याख्या करते हुए कहते हैं-- (यः) जो (सत्वेषु) जीवों पर (अनुकम्पमानमनाः) दयालु चित्त होता हुआ (विभावर्याम्) रात्रि में (अन्न) अन्न, (पानं) पेय, ( खाद्यं ) खाद्य और (लेह्य)
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy