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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार [ ३१३ से श्रावक की प्रतिमाओं में वृद्धि होती जाती है । अन्य ग्रन्थों में श्रावक के तीन भेद बतलाये हैं- पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक । जो सम्यक्दर्शन के साथ आठ मूलगुणों का अभ्यासरूप से पालन करता है वह पाक्षिक श्रावक कहलाता है । यहां पर यह बात ध्यान में रखनी है कि जब गृहस्थ सम्यग्दर्शन से विशुद्ध होता है तब अहिंसा की सिद्धि के लिए मद्यमांस-मधु आदि का संकल्पपूर्वक त्याग करता है, क्योंकि उसे इन निन्दनीय वस्तुओं से अरुचि हो जाती है। जैन घरानों में मद्य-मांस आदि का सेवन नहीं करना कुलधर्म कहा जाता है । पाक्षिकश्रावक की श्रेणी में वह आता है जो जिनवचनों पर श्रद्धान करके संकल्पपूर्वक मद्य मांसादि का त्याग करता है । मात्र कुल परम्परा से इन वस्तुओं के त्यागमात्र से पाक्षिक श्रावक नहीं हो सकता । अत: जैन घरानों में जन्म लेने वालों को भी जिनागम के कथन को जानकर और उस पर श्रद्धा रखकर नियमानुसार मद्यादि का त्याग करना चाहिए। केवल इन वस्तुओं के सेवन न करने मात्र से वे व्रती नहीं माने जा सकते । जो मद्यादिक त्याग का नियमानुसार व्रत लेते हैं, वे कुसंगति में पड़कर भी मचादिक का सेवन नहीं करते । आज होटलों के खान-पान से, कुलधर्म की मर्यादा से मद्य-मांसादि का सेवन नहीं करने वाले भी इन वस्तुओं का सेवन करने लगते हैं। इस प्रकार जो सम्यग्दर्शन के साथ अष्टमूलगुणों का पालन करते हैं, वे पाक्षिक श्रावक कहलाते हैं । जो ग्यारह प्रतिमाओं का निरतिचार पालन करता है वह नैष्ठिकश्रावक है । नैष्ठिकश्रावक के ग्यारह भेद निम्न प्रकार हैं--१ दर्शनप्रतिमा, २ व्रतप्रतिमा, ३ सामायिक प्रतिमा, ४ प्रोषधोपवासप्रतिमा, ५ सचित्तत्यागप्रतिमा ६ रात्रिभुक्तित्यागप्रतिमा, ७ ब्रह्मचर्यप्रतिमा, आरम्भत्यागप्रतिमा, परिग्रहत्यागप्रतिमा, १० अनुमति - त्यागप्रतिमा, ११ उद्दिष्टत्यागप्रतिमा 1 ८ इन ग्यारह स्थानों में श्रावक क्रम क्रम से आगे-आगे बढ़ सकता है, जो आगे-आगे की प्रतिमाओं को धारण करता है उसे पीछे की प्रतिमाओं का परिपालन करना अनिवार्य है, जिस प्रकार जो ब्रह्मचर्य प्रतिमा का परिपालक है उसे पहली दर्शन प्रतिमा से लेकर ब्रह्मचर्यं प्रतिमा तक सभी प्रतिमाओं के व्रत नियम आदि का पालन साथ पिछले सभी अगले अगले पदों के करना होगा । इसी प्रकार सभी प्रतिमाओं के पदों का आचरण करना अनिवार्य है ।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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