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________________ रत्नकरराष्ट्र श्रावकाचार [ ३११ एवं सल्लेखनामनुतिष्ठतां निःश्रेयसलक्षणं फलं प्रतिपाद्य अभ्युदयलक्षणं फलं प्रतिपादयन्नाह पूजार्थाजैश्वर्यबलपरिजनकामभोग भूयिष्ठः । अतिशयित भुवनमद्भुतमभ्युदयं फलति सद्धर्मः ॥१४॥ अभ्युदयं इन्द्रादिपदावाप्तिलक्षणं । फलति अभ्युदयफलं ददाति । कोऽसौ ? सद्धर्मः सल्लेखनानुष्ठानोपाजितं विशिष्टं पुण्यं । कथम्भूतमभ्युदयं ? अद्भुतं साश्चयं । कथंभूत मत ? अतिकारितभुवनं गतः। कैः कृत्वा ? पूजार्थाजश्वर्य: ऐश्वर्यशब्द: पूजार्थाज्ञानां प्रत्येक सम्बध्यते । कि विशिष्टैरतरित्याह – बलेत्यादि । बलं सामर्थ्य परिजनः परिवारः कामभोगौ प्रसिद्धौ । एतद्भूयिष्ठा अतिशयेन बहवो येषु । एतैरुपलक्षितैः पूजादिभिरतिशयितभुवनमित्यर्थः ।।१४।। इस प्रकार सल्लेखना धारण करने वालों के निःश्रेयसरूप फल का प्रतिपादन कर अब अभ्युदयरूप फल का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं (सद्धर्मः) सल्लेख ना के द्वारा समुपाजित समीचीन धर्म, (बलपरिजनकामभोग भूयिष्ठः) बल, परिवार तथा काम और भोगों से परिपूर्ण (पूजार्थाजश्वयः) पूजा, अर्थ, आज्ञा तथा ऐश्वर्य के द्वारा ( अतिशयितभुवनं ) संसार को आश्चर्ययुक्त करने वाले तथा स्वयं ( अद्भुतं ) आश्चर्यकारी ( अभ्युदयं ) स्वर्गादिरूप अभ्युदय को ( फलति ) फलता है। टोकार्थ-सल्लेखना धारण करने से उपाजित हुआ विशिष्ट पुण्यरूप समीचीन धर्म उस आश्चर्यकारी अभ्युदय-इन्द्रादिकपदरूप फल को देता है जो बल, परिजन, काम तथा भोगों से परिपूर्ण पूजा, अर्थ, आज्ञारूप ऐश्वर्य के द्वारा समस्त लोक को अभिभूत करता है। विशेषार्थ-सल्लेख ना का प्रमुख फल तो मोक्ष प्राप्त करना है। किन्तु मोक्ष प्राप्ति योग्य सुअवसर न मिलने पर उसका गोण फल अभ्युदय है वह फलित होता है। वह जीव स्वर्ग में इन्द्र पदवी प्राप्त करके पूजा, आज्ञा, ऐश्वर्य, बल परिकरजन, काम भोग की प्रचुरता से समस्त जगत् को अभिभूत करता है । अर्थात् तीन लोक में जो
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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