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________________ २८२ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार एक बार श्रेणिक महाराज, वर्धमानस्वामी को वैभार पर्वत पर आया सुनकर आनन्द भेरी बजवाकर बड़े वैभव से उनकी वन्दना के लिए गये। सेठानी आदि को लेकर घर के अन्य लोग भी जब वन्दना भक्ति के लिए चले गये तब वह मेंढ़क पूजा के निमित्त आंगन की बावड़ी का कमल लेकर चला । जाता हुआ वह मेंढ़क हाथी के पाँव से कुचलकर मर गया और पूजा सम्बन्धी अनुराग के वश से उपार्जित पुण्य के प्रभाव से सौधर्म स्वर्ग में महान् ऋद्धियों को धारण करने वाला देव हुआ। अवधिज्ञान से पूर्वभव का वृत्तान्त जानकर अपने मुकुट के अग्रभाग में मेंड़क का चिन्ह कर वह आया और वर्धमान स्वामी को वन्दना करते समय राजा श्रेणिक ने गौतमस्वामी से पूछा कि इसके मेंढक का चिन्ह रखने में क्या कारण है ? गौतमस्वामी ने उसका पूर्ववृत्तान्त कहा । उसे सुनकर सब लोग पूजा का अतिशय करने में उद्यत हो गये ।।३०।१२०॥ इदानीमुक्तप्रकारस्य वयावृत्यस्यातीचारानाह-- हरितपिधान निधानेह्यनादरास्मरणमत्सरत्वानि । वैयावृत्त्यस्यैते व्यतिकमाः पञ्च कश्यन्ते ॥३१॥ पंचैते आर्यापूर्वार्धकथिता । वैयावृत्त्यस्य व्यतिक्रमाः कथ्यन्ते । तथाहि । हरितपिधाननिधाने हरितेन पद्मपत्रादिना पिधानं झंपनमाहारस्य । तथा हरिते तस्मिन् निधानं स्थापनं । तस्य अनादरः प्रयच्छतोऽप्यादराभावः । अस्मरणमाहारादिदानमेतस्यां वेलायामेवंविधपात्राय दातव्यमिति आहार्यवस्तुष्विदं दत्तमदत्तमिति वा स्मृतेरभावः । मत्सरत्वमन्यदातृदानगुणा सहिष्णुत्वमिति ॥३१॥ इति प्रभाचन्द्रविरचितायां समन्तभद्रस्यामिविरचितोपासकाध्ययन टीकायां चतुर्थः परिच्छेदः । अब उक्त प्रकार के वैयावृत्य सम्बन्धी अतिचार कहते हैं (हि) निश्चय से (हरितपिधाननिधाने) देने योग्य वस्तु को हरितपत्र आदि से ढकना तथा हरितपत्र आदि पर देने योग्य वस्तु को रखना ( अनादरास्मरणमत्सरस्थानि ) अनादर, अस्मरण और मत्सरत्व ( एते पञ्च ) ये पांच ( वैयावृत्यस्य ) वैयावृत्य के (व्यतिक्रमाः) अतिचार (कथ्यन्ते ) कहे जाते हैं।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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