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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार [ २८३ टोकार्थ-वैयावृत्य शिक्षाव्रत के पांच अतिचार कहते हैं, तद्यथा-हरे कमल पत्र आदि से आहार को ढकना 'हरितपिधान' नामका अतिचार है। हरे कमल पत्र आदि पर आहार को रखना 'हरितनिधान' नामका अतिचार है । देते हुए भी आदर भाव नहीं होना 'अनादर' नामका अतिचार है । आहारदान इस समय ऐसे पात्र के लिये देना चाहिए अथवा आहार में यह वस्तु दी है कि नहीं दी है इस प्रकार की स्मृति का अभाव होना 'अस्मरण' नामका अतिचार है । अन्य दाता के दान तथा गुणों को सहन नहीं करना 'मात्सर्य' कहलाता है। इस प्रकार वैयावृत्य के ये पाँच अतिचार कहे गये हैं। विशेषार्थ- यहाँ पर वैयावृत्य अर्थात् चार प्रकार के दानों में आहार दान को प्रमुख बतलाते हुए उसके अतिचारों का वर्णन करते हैं— मुनिराज सचित्तवस्तु के त्यागी होते हैं, उनको प्रासुक अचित्त वस्तु ही आहार में देना चाहिए । परन्तु अचित्त वस्तु को सचित्त कमल पत्र आदि से ढक देना, सचित्त पिधान नामका अतिचार है। इसी प्रकार अचित्त पत्र आदि पर रखे हुए आहार को देना यह सचित्त निधान नामका अतिचार है । मुनिराज को अज्ञान या प्रमाद के वश से सचित्त में रखे हुए या सचित्त से ढका हुआ आहार देना अतिचार है । मुनिराज अपने नगर में आ गये अथवा अन्यत्र कहीं पर भी बेगार समझकर कि क्या करें, इनको आहार नहीं देंगे तो ये बिना आहार के रह जायेंगे और हमारी निन्दा होगी इत्यादि उपेक्षा भाव से आहार देना अनादर नामक अतिचार है। आहारादि की विधि को भूल जाना अथवा क्या वस्तु देने योग्य है, क्या देने योग्य नहीं है यह अस्मरण नामका अतिचार है। मत्सर शब्द के अनेक अर्थ हैं, दूसरे दाता के गुणों को सहन नहीं करना जैसे-इस श्रावक ने यह दिया है तो क्या मैं इससे हीन हैं इस प्रकार दूसरे से डाह करके दान देना मत्सर है । तथा एक दूसरे की सम्पत्ति को सहन नहीं करना या क्रोध करना, मत्सर है, साधु की प्रतीक्षा करते हुए कोप करना कि कितनी देर से खड़ा हूँ अभी तक कोई नहीं आया, यह भी मत्सर है, इस प्रकार से मत्सर शब्द के अनेक अर्थ होने से सब अतिचार घटित होते हैं । किन्तु जान बूझकर करने पर तो अतिचार न होकर व्रत का भंग ही है। तस्वार्थसूत्र में सचित्तनिक्षेप सचित्तपिधान, परव्यपदेश, मात्सर्य और कालातिक्रम ये पाँच अतिचार बतलाये हैं, उनमें सचित्तनिक्षेप, सचित्तपिधान, मत्सर ये तीन अतिचार तो समन्तभद्रस्वामी के
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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