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________________ - म . - २६८ ] रत्नकरण्ड श्रावकाचार दिन आत-रोद्रध्यान करता है जैसे-जैसे धन वृद्धि को प्राप्त होता है वैसे-वैसे तृष्णा भी बढ़ती जाती है। इस प्रकार इस जीव को दुर्ध्यान करते हुए अनन्तकाल व्यतीत हो गये । अब किंचित् शुभ कर्म के उदय से, मोहरूप निद्रा के उपशम होने से, जिनेन्द्र भगवान के वचनों के प्रभाव से जागृति प्राप्त हुई है, इसलिये आत्महित का साधन जो चार प्रकार का दान है उसे देना चाहिए। सभी दानों में आहारदान प्रधान है, जीवों का जीवन आहार से ही सुरक्षित है । इसलिये कोटि स्वर्णदान से भी आहारदान महत्त्वपूर्ण है । आहार से शरीर की रक्षा है, शरीर से रत्नत्रयधर्म का परिपालन होता है, और रत्नत्रय से निर्वाण सुख की प्राप्ति होती है । आहार बिना ज्ञानाभ्यास भी नहीं होता, न व्रत, तप-संयम का परिपालन हो सकता है और न प्रतिक्रमण सामायिक आदि हो सकते हैं, आहार के बिना परमागम का उपदेश भी नहीं हो सकता, आहार के बिना बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, शरीर की कान्ति नष्ट हो जाती है तथा कीर्ति, क्षान्ति, नीति, रीति, गति, शक्ति, द्युति, प्रीति, प्रतीति आदि सभी गुण नाश को प्राप्त हो जाते हैं। ___ आहार के बिना प्राणी का मरण हो जाता है इसलिए आहार दान के समान उपकारक श्रेष्ठ और कुछ भी नहीं है । रोग को दूर करने के लिए प्रासुक औषधिदान श्रेष्ठ है। क्योंकि शरीर में रोग की उद्भूति से संयमत्रत बिगड़ सकता है । ध्यान-स्वाध्याय का लोप हो जाता है, सामायिक आदि आवश्यक क्रिया नहीं हो सकती। रोग के निमित्त से आर्तध्यान हो जाता है, रोग वृद्धि के साथ-साथ संक्लेश की भी वृद्धि होने लगती है, रोगी व्यक्ति पराधीन हो जाता है इसलिए योग्य प्रासुक औषधिदान देकर रोग दूर करने का प्रयास करना ही श्रावक का कर्तव्य है। ज्ञानदान के समान जगत् में और कोई उपकारक वस्तु नहीं है। ज्ञान के बिना मनुष्यजन्म पशु के समान है ज्ञान के बिना स्व-पर का विवेक नहीं हो सकता ! ज्ञान से ही इस लोक और परलोक का ज्ञान होता है, ज्ञान से ही धर्म और पापको जान सकते हैं । ज्ञान से ही सच्चे देव, कुदेव, सुगुरु-कुगुरु आदि का भेद जाना जाता है । सच्चे ज्ञान बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। ___ अन्य आचार्यों ने उपकरणदान के स्थान पर ज्ञानदान और आवासदान के स्थान पर अभयदान का उल्लेख किया है । ज्ञानदान में मात्र ज्ञान के उपकरण और
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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