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रत्नकरण्ड श्रावकाचार अनमार प्रर्मामृत के पिण्ड शुद्धि का कथन करने वाले पांचवें अध्याय में कहा गया है कि आहार, औषध, आवास, पुस्तक पिच्छिका आदि द्रव्य देने योग्य हैं । रागद्वेष, असंयम, मद, दुःख आदि को उत्पन्न न करते हुए सम्यग्दर्शन आदि की वृद्धि का कारण होना यह उस द्रव्य की विशेषता है ।
प्राचार्य प्रमतचन्द्रजी ने भी कहा है कि जो राग-द्वेष असंयम मद दु:ख यम
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मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज