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________________ १२ । रनकरण्ड श्रावकाचार नीयं आगमश्रद्धानादेव तच्छद्धानसंग्रह प्रसिद्धः । अबाधितार्थ प्रतिपादक्रमाप्तवचनं ह्यागमः । तच्छद्धाने तेषां श्रद्धानं सिद्धमेव । किविशिष्टानां तेषां ? 'परमार्थानां' परमार्थभूतानां न पुनबौद्धमत इव कल्पितानां । कथंभूतं श्रद्धानं ? 'अस्मयं न विद्यते वक्ष्यमाणो ज्ञानदद्यष्टप्रकारः स्मयो गर्यो यस्य तत् । पुनरपि किंविशिष्टं ? 'निमूढापोई' त्रिभिदैर्वक्ष्यमाणलक्षणरपोढं रहितं यत् । 'अष्टांग' आप्टौं वक्ष्यमाणानि निःशंकितस्वादोन्यंगानि स्वरूपाणि यस्य ।।४।। आगे सम्यग्दर्शन का स्वरूप कहते हैं श्रद्धानमिति-(परमार्थानां) परमार्थभूत (आप्तागमतपोभृताम्) देव शास्त्र और गुरु का (विमूढापोढं) तीन मूढताओं से रहित ( अष्टांगं ) आठ अंगों से सहित और (अस्मयम् ) आठ प्रकार के मदों से रहित (श्रद्धानं) श्रद्धान करना (सम्यग्दर्शनम् ) सम्यग्दर्शन (उच्यते) कहा जाता है । टीकार्थ-----आप्त-देव-आगम-शास्त्र, तपोभूत-गुरु का जो आगम में स्वरूप बतलाया है, उन आप्त, आगम और तपोभूत का उसी रूप से दृढ़ श्रद्धान करना सो सम्यग्दर्शन है । आप्त आगम साधु का लक्षण आगे कहा जाएगा। यहाँ कोई शंका करे कि अन्य शास्त्रों में तो छह द्रव्य, सात तत्त्व तथा नौ पदार्थों के श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहा है, परन्तु यहाँ आचार्य ने देव-शास्त्र-गुरु की प्रतीति को सम्यग्दर्शन कहकर अन्य शास्त्रों में कथित लक्षण का संग्रह नहीं किया है तो इसका समाधान यह है कि आगम के श्रद्धान से ही छह द्रव्य, सात तत्त्व और नौ पदार्थों के श्रद्धानरूप लक्षण का संग्रह हो जाता है। क्योंकि-'अबाधितार्थप्रतिपादकमाप्सवचनं द्यागमः'-'अबाधित' अर्थ का कथन करने वाले जो आप्त के वचन हैं वे ही आगम हैं। इसलिये आगम के श्रद्धान से ही छह द्रव्यादिक का श्रद्धान संग्रहीत हो जाता है। वे आप्त, आगम, गुरु परमार्थभूत हैं किन्तु बौद्धमत के द्वारा कल्पित सिद्धान्त परमार्थभूत नहीं है । वास्तव में, ज्ञान पूजा कुल जाति बल ऋद्धि तप और शरीर इन आठ मदों से रहित लोकमढ़ता देवमूढ़ता और गुरुमूढ़ता से रहित और निःशंकित, नि:कांक्षित, निविचिकित्सा, अमूढष्टि, उपगृहन स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना इन आठ अंगों से सहित श्रद्वान ही सम्यग्दर्शन कहलाता है। आठ अंगों, आठ मदों और तीन मूढ़ताओं का लक्षण आगे कहेंगे ।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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