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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार [ २४१ एवं तिर्यंचों के द्वारा किये गये उपसर्ग को दीनतापूर्वक शब्दों का उच्चारण नहीं करते हुए सहन करें। विशेषार्थ-सामायिक में बैठने पर यदि भयंकर वायु के वेग से शीत की बाधा उपस्थित हो जाय या गर्मी के कारण व्याकुलता होने लगे, अथवा किसी दुष्टदेव, दुष्ट वैरी, सह व्याधादिया तिची के द्वारा कोई उपसर्ग किया जाय या चेतनअचेतनकृत कोई उपसर्ग तथा अग्नि जनित उपसर्ग आ जाय तो गृहस्थ श्रावक को उस काल में धैर्य धारण करना चाहिए। उसे न तो अपनी दीनता दिखलानी चाहिए और न किसी प्रकार से उसका प्रतिकार ही करना चाहिए । मौनपूर्वक शीत-उष्ण और डॉस-मच्छरों के परीषहों को शान्त परिणामों से सहन करना चाहिए और अपनी ग्रहण की हुई प्रतिज्ञा से विचलित नहीं होना चाहिए ।।१३।।१०३।। ___तं चाधिकुर्वाणा: सामायिके स्थिता एवंविधं संसारमोक्षयोः स्वरूपं चिन्तयेयुरित्याह अशरणमशुभमनित्यं दुःखमनात्मानमावसामि भवम् । मोक्षस्तद्विपरीतात्मेति ध्यायन्तु सामयिके ॥ १४ ॥ तथा सामयिके स्थिता ध्यायन्तु । कं ? भवं स्वोपात्तकर्मवशाच्चतुर्गतिपर्यटनं । कथंभूतं ? अशरणं न विद्यते शरणमपायपरिरक्षकं यत्र । अशुभमशुभकारणप्रभवत्वादशुभकार्यकारित्वाच्चाशुभं । तथाऽनित्यं चतसृष्वपि गतिषु पर्यटनस्य नियतकालतयाsनित्यत्वादनित्यं । तथा दुःखहेतुत्वादुःखं । तथानात्मानमात्मस्वरूपं न भवति । एवं विधं भवमावसामि एवं विधे भवे तिष्ठामीत्यर्थः । यद्येवंविधः संसारस्तहि मोक्षः कीदृशइत्याह मोक्षस्तद्विपरीतात्मा तस्मादुक्तभव स्वरूपाद्विपरीतस्वरूपतः शरणशुभादिस्वरूपः इत्येवं ध्यायन्तु चिन्तयन्तु सामायिके स्थिताः ।।१४।। सामायिक में स्थित मनुष्य संसार और मोक्ष के इस प्रकार के स्वरूप का चिन्तन करें, यह कहते हैं (सामयिके) सामायिक में ( स्थिता: ) स्थित मनुष्य ( इति ) इस प्रकार (ध्यायन्तु) ध्यान करें कि मैं (अशरणं) शरण रहित ( अशुभं ) अशुभ ( अनित्यं ) अनित्य ( दुःखं ) दुःखस्वरूप और ( अनात्मानं ) अनात्मस्वरूप ( भवं ) संसार में
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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