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शिक्षावृताधिकारश्चतुर्थः । Osasuna RECERDERTISGARH
साम्प्रतं शिक्षाव्रतस्वरूपप्ररूपणार्थमाहवेशावकाशिकं वा सामायिक प्रोषधोपवासो वा ।
वैयावत्यं शिक्षावृतानि चत्वारि शिष्टानि ॥१॥
शिष्टानि प्रतिपादितानि । कानि ? शिक्षाव्रतानि । कति ? चत्वारि । कस्मात् ? देशावकाशिक मित्यादिचतु:प्रकारसद्भावात् । वा शब्दोऽत्र परस्पर प्रकार समुच्चये । देशाधकाशिकादीनां लक्षणं स्वयमेवाने ग्रन्थकारः करिष्यति ।।१।।
अब शिक्षाबत का स्वरूप व भेद बतलाते हैं
( देशावकाशिक ) देशावकाशिक, ( वा ) और ( सामायिक ) सामायिक, (प्रोषधोपवासः) प्रोषधोपवास (वा) और (वैयावृत्यं) वैयावृत्य ये ( चत्वारि ) चार (शिक्षावतानि) शिक्षाव्रत (शिष्टानि) कहे गये हैं ।
टोकार्थ-शिक्षाबत के चार भेद हैं। १ देशावकाशिक, २ सामायिक, ३ प्रोषधोपवास और ४ वैयावृत्य । इन सबका लक्षण ग्रन्थकार स्वयं आगे कहेंगे । श्लोक में जो वा शब्द है वह परस्पर समुच्चय के लिए प्रयुक्त किया है।
विशेषार्थ–'शिक्षायै प्रतं शिक्षाप्रतम्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जिनसे मुनिव्रत धारण करने की शिक्षा मिले, उन्हें शिक्षात कहते हैं । यद्यपि सभी आचार्यों ने गुणन्नत तीन और शिक्षाबत चार कहे हैं। किन्तु उनके नाम निर्धारण में विभिन्न मत हैं । इन दोनों अतों को शीलनत भी कहते हैं। पूज्यपाद स्वामी ने शीलबत की रक्षा के लिए कहा है । भगवती पाराधना में भी कहा है कि जैसे-धान्य की रक्षा के