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________________ रत्नकरण्ड श्रावकाचार [ २२३ का उल्लेख किया है । उस लक्षण से अन्य भोगोपभोग सम्बन्धी अतिचार भी संकेतित हैं । आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने भोगोपभोग सामान्य को लक्ष्य में रखकर उपयुक्त अतिचारों का उल्लेख किया है । तत्त्वार्थ सुत्रकार द्वारा निर्दिष्ट अतिचारों का खुलासा इस प्रकार है-जिसमें चेतना हो ऐसी हरितकाय वनस्पति को सचित्त कहते हैं । यद्यपि सघात, बहुघात इत्यादि कथन से उसका निषेध हो जाने पर भी उसमें प्रवृत्ति होने पर व्रत के भंग की बात आती है, फिर भी व्रत की अपेक्षा रखते हुए ध्यान न रहन से सचित्त भोजन को अतिचार कहा है। वह प्रथम अतिचार है। सचित्तवृक्ष आदि से सम्बद्ध गौंद आदि को या पके फल आदि को अथवा जिसके अन्दर के बीज सचित्त हैं, ऐसे खजूर, आम आदि को सचित्त सम्बद्ध कहते हैं। सचित्त भोजन के त्यागी के द्वारा उनका भक्षण प्रमादादि के वश ही होता है । इसलिए सावद्य आहार में प्रवृत्ति होने से अतिचार है। यह सचित्तसम्बद्धाहार नामका दूसरा अतिचार है । सचित्त से मिले हुए को जिसे अलग करना शक्य नहीं है अर्थात् जिसमें सूक्ष्म जन्तु हैं उसे सचिस सम्मिश्र कहते हैं। जैसे-अदरक, अनार के बीज और चिर्भटी आदि से मिले पूड़े या तिल से मिले हुए यवधान । यह सचित्तसम्मथ नामका तीसरा अतिचार है । जिसके अन्दर चावल का कुछ अंश कच्चा रह गया हो या अत्यन्त पक गया हो उसे दुष्पक्य कहते हैं । अधपके चावल, जौ, गेहूँ, चिउड़ा आदि खाने से पेट में आंद हो जाती है । अतः ऐसा भोजन इस लोक सम्बन्धी बाधा का कारण है तथा जितने अंश में वह सचेतन होता है उतने अंशों में परलोक का घात करता है। इस प्रकार यह दुष्पक्व नामक चतुर्थ अतिचार है । गरिष्ट पदार्थ का भक्षण अभिषष नामका पांचवां अतिचार है । वैद्यकशास्त्र के अनुसार भी इस तरह का भोजन अजीर्ण और आमकारक होता है। चारित्रसार में सचित्तादि आहार को अतिचार बतलाने में यह युक्ति दी है कि इनके भक्षण में सचित्त का उपयोग होता है अथवा वातादि का प्रकोप होता है । सोमदेव आचार्य ने भी पूर्ववत् ही अतिचार कहे हैं-जो भोजन कच्चा है। या जल गया है (दुष्पक्व) जिसको खाना निषिद्ध है । जो जन्तुओं से सम्बद्ध है, मिथ है, और बिना देखा है ऐसे भोजन को खाना भोगोपभोगपरिमाणवत की क्षति का कारण है ॥ ४४ ॥ ६० !! इस प्रकार समन्तभद्रस्वामिविरचित उपासकाध्ययन की प्रभाचन्द्राचार्यविरचित टीका में तृतीय परिच्छेद (चारित्राधिकार) पूर्ण हुआ।
SR No.090397
Book TitleRatnakarand Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorAadimati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages360
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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